Tuesday, September 29, 2020

493..जीवन यात्रा कैसी अबूझ कौन इसे समझा है अब तक

 सादर नमस्कार
उन्तीसवां दिन सितम्बर का
सन 2021 देखने की उत्कट अभिलाषा
आज के पिटारे में....

मेधा और मन ...
जीवन यात्रा कैसी अबूझ

कौन इसे समझा है अब तक
चक्र चले ये चले निरन्तर 
मेधा सृष्टि रहेगी जब तक
मतभेद अवसाद साथ रहे
चले सदा भावों का भाला।।

पंख पसार उड़े क्षितिजों तक
एक जागरण ऐसा भी हो 
खो जाए जब अंतिम तन्द्रा, 
रेशा-रेशा नाचे ऊर्जित 
मिटे युगों की भ्रामक निद्रा !

बारम्बार वापसी - -
तृषित बियाबान, क्रमशः हम भूलते गए
दूसरों के निःश्वास, मुस्कुराहटों के
नेपथ्य का दर्द, बचाते रहे ख़ुद
को अंधकार गुफाओं से,
पाँव पसारता रहा
लेकिन हमारे
बहुत अंदर
तक
अनिःशेष रेगिस्तान।


जन्मदिन मुबारक 

तुम इस तरह आओ के मँगल कलश छलके 

मेरे घर में ख़ुशी ही ख़ुशी चहके 


ताउम्र रहे साथ तुम्हारे मेरा प्यार 

मेरी दुआओं का असर बन के 


भास्कर के स्तंभकार

निष्पक्ष पत्रिकारिता के लिए यह जरुरी है कि सिक्के के दोनों पहलुओं के बारे में ईमानदारी के साथ बिना भेद-भाव के, बिना पक्षपात किए पूरा खुलासा किया जाए ! यदि ऐसा नहीं होता है तो मीडिया के साथ जो ''बिकाऊ विशेषण'' जोड़ दिया गया है उसको और हवा ही मिलेगी ! 
....
आज बस
पता नहीं कल कौन
सादर  














5 comments:

  1. बढ़िया अंक..
    आभार..
    सादर..

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  2. सुन्दर प्रस्तुति व संकलन, मेरी रचना को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।

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  3. देर से आने के लिए खेद है, पठनीय रचनाओं की खबर देते सूत्र, आभार !

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  4. सुंदर रचनाओं का चयन

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