सादर वन्दे
कल शिक्षक दिवस है
माह सितम्बर का पांचवां दिन
घर पर बच्चे बड़ी मायूसी से
कार्ड बना रहे है अपने गुरुजनों के लिए
मारकर अपना मन, दे नहीं पाएँगे
स्कूल जो बंद है
....
आज का पिटारा खोलें...
किताब-ए-वक़्त ...रवीन्द्र सिंह यादव
बुज़ुर्गों की उपेक्षा
मासूमों पर
क्रूरतम अत्याचार
संस्कारविहीन स्वेच्छाचारिता
समाज का सच है।
क्यों मौन है? ..अनीता सैनी
मोती-सी बरसीं बूँदें धरा के आँचल पर
तब पात प्रीत के धोती है बरसात
पल्लवित लताएँ चकित अनजान-सी
रश्मियाँ अनिल संग जोहती जब बाट
ऊँघते स्वप्न की समेटे दामन में सौग़ात
पुकारती आवाज़ का कोलाहल क्यों मौन है?
हम चिर ऋणी ..प्रतिभा सक्सेना
प्रिय धरित्री,
इस तुम्हारी गोद का आभार ,
पग धर , सिर उठा कर जी सके .
तुमको कृतज्ञ प्रणाम
जीते हैं कैसे यार, ....श्रीराम रॉय
हम होंगे पास पास और,
मौसम भी खास होगा।
जमाने में न सोचा था,
ऐसा भी कभी होगा।।
सुनसान रास्तों पर, मिल जाते ऐसे यार।।
"तुम तो नहीं हो" ...मीना भारद्वाज
झुंझलाहट भर देते थे
पता है...कल मैंने
कच्चे आम की
सब्जी बनाई थी
और...
इतने बरसों के बाद भी
उसमें स्वाद
तुम्हारे हाथों वाला ही था
लगता है ...
मेरे हाथ भी अब
तुम्हारे ख्यालों की
महक से
महकने लगे हैं
कह दो न मुझे अच्छी ...सुधा सिंह व्याघ्र
कह दो न मुझे अच्छी,
यदि लगे कि अच्छी हूँ मैं
तुम्हारे मुँह से,
अपने बारे में,
कुछ अच्छा सुन शायद
थोड़ी और अच्छी हो जाऊँगी मैं,
...
अब बस
कल किसने देखा
सादर
कल शिक्षक दिवस है
माह सितम्बर का पांचवां दिन
घर पर बच्चे बड़ी मायूसी से
कार्ड बना रहे है अपने गुरुजनों के लिए
मारकर अपना मन, दे नहीं पाएँगे
स्कूल जो बंद है
....
आज का पिटारा खोलें...
किताब-ए-वक़्त ...रवीन्द्र सिंह यादव
बुज़ुर्गों की उपेक्षा
मासूमों पर
क्रूरतम अत्याचार
संस्कारविहीन स्वेच्छाचारिता
समाज का सच है।
क्यों मौन है? ..अनीता सैनी
मोती-सी बरसीं बूँदें धरा के आँचल पर
तब पात प्रीत के धोती है बरसात
पल्लवित लताएँ चकित अनजान-सी
रश्मियाँ अनिल संग जोहती जब बाट
ऊँघते स्वप्न की समेटे दामन में सौग़ात
पुकारती आवाज़ का कोलाहल क्यों मौन है?
हम चिर ऋणी ..प्रतिभा सक्सेना
प्रिय धरित्री,
इस तुम्हारी गोद का आभार ,
पग धर , सिर उठा कर जी सके .
तुमको कृतज्ञ प्रणाम
जीते हैं कैसे यार, ....श्रीराम रॉय
हम होंगे पास पास और,
मौसम भी खास होगा।
जमाने में न सोचा था,
ऐसा भी कभी होगा।।
सुनसान रास्तों पर, मिल जाते ऐसे यार।।
"तुम तो नहीं हो" ...मीना भारद्वाज
झुंझलाहट भर देते थे
पता है...कल मैंने
कच्चे आम की
सब्जी बनाई थी
और...
इतने बरसों के बाद भी
उसमें स्वाद
तुम्हारे हाथों वाला ही था
लगता है ...
मेरे हाथ भी अब
तुम्हारे ख्यालों की
महक से
महकने लगे हैं
कह दो न मुझे अच्छी ...सुधा सिंह व्याघ्र
कह दो न मुझे अच्छी,
यदि लगे कि अच्छी हूँ मैं
तुम्हारे मुँह से,
अपने बारे में,
कुछ अच्छा सुन शायद
थोड़ी और अच्छी हो जाऊँगी मैं,
...
अब बस
कल किसने देखा
सादर
उव्वाहहहह...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...
रवींद्र जी की रचना
हम लगाए हैं
सादर..
सुन्दर सराहनीय सूत्रों से सजे संकलन में रचना सम्मिलित करने के लिए आभार सर. सादर.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिंक्स
ReplyDeleteसराहनीय चयन.
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय सर। देरी के लिए माफ़ी चाहती हूँ।
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार।
सादर प्रणाम