Tuesday, September 1, 2020

465..किसी के दिल को कैसे टटोला जाता है कहीं भी तो नहीं बताया जाता है

नया महीना
नई शुरुआत
दिव्या का आदाब
चलें रचनाओं की ओर...


बोया पेड़ बबूल का तो .....!!..कुछ अलग सा

एक बहुत पुरानी कहावत है, बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां ते होय ! भले ही इसकी अन्तर्निहित सीख यही है कि बुरे काम का अच्छा नतीजा नहीं मिल सकता। पर दूसरी तरफ इस मुहावरे को सुन कुछ ऐसा नहीं लगता कि जैसे बबूल का पेड़ लगाने वाले ने कोई बहुत बड़ी गलती कर दी हो और आम जैसे महत्वपूर्ण, फलदार वृक्ष की जगह इस बेकार, कंटीले व अनुपयोगी से पेड़ को लगा दिया हो ! चलो, यदि लगा भी दिया, तो फिर वह इससे आम की उम्मीद क्यों करेगा !

कोई नहीं है दूर तक - - शान्तनु सान्याल

नेपथ्य में कहीं खो गए सभी
उन्मुक्त कंठ, अब तो
क़दमबोसी का
ज़माना है,
कौन
सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - -
मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ
जोड़े हुए, कौन
उठेगा
लिए सिंह गर्जना, यहाँ तो -
ख़ामोशी का ज़माना
है। 

अक्सर खामोश लम्हों में ....मीना भारद्वाज

अक्सर खामोश लम्हों में
किताबें भंग करती हैं
मेरे मन की चुप्पी…
खिड़की से आती हवा के साथ
पन्नों की सरसराहट
बनती है अभिन्न संगी…

रुक जरा ..पुरुषोत्तम सिन्हा

पल भर को, रुक जरा, ऐ मेरे मन यहाँ,
चुन लूँ, जरा ये खामोशियाँ!

चुप-चुप, ये गुनगुनाता है कौन?
हलकी सी इक सदा, दिए जाता है कौन?
बिखरा सा, ये गीत है!
कोई अनसुना सा, ये संगीत है!
है किसकी ये अठखेलियाँ,
कौन, न जाने यहाँ!

उलूक का दिल ....

बहुत कोशिश
और बहुत मेहनत
करनी पड़ती है
सामने वाले
के दिल को
टटोलने के लिये
पहले तो दिल
कहाँ पर है
यही अँदाज
नहीं हो पाता है
दूसरा अपना
नहीं किसी
और का
दिल टटोलना
होता है
इसलिये
उससे पूछा भी
नहीं जाता है
...
आज बस
सादर











3 comments:

  1. ख़ूबसूरत संकलन व प्रस्तुति, मुझे शामिल करने हेतु आभार - - नमन सह।

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  2. खूबसूरत रचनाओं से संकलन में रचना शामिल करने के लिए तहेदिल से आभार दिव्या जी ।

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