Saturday, September 26, 2020

490...मुस्कुरा लें आज या ख़ुद को रुला लें

सादर अभिवादन
माहौल मिश्रित है
कह सकते हैं
जो घर में है वो
ज्यादा सुखी है
छोटे-बड़े बच्चों की
ऑनलाईन कक्षाएँ जारी है
वे स्कूल जाते थे तो घर 
का फैला काम समेट लेते थे
अब वे घर में हैं तो संतोष है
वे सुरक्षित तो हैं....
.....

आज की रचनाएँ....

प्यार प्यार है,  इश्क इबादत है
जब जुनूनी नहीं तो पहला क्या आखिरी क्या..,
अक्षर में बताया या ग्रन्थ लिख डाला
कारूनी नहीं तो पहला क्या आखरी क्या..,
छौने ने छू लिया ज्यों आकाश , 
बीज से बिरवा बरगद बन फैला दिया प्रकाश..


रात है बहुत बाक़ी, आलोक - छाया -
का खेल, अभी तो सिर्फ आरम्भ
की है बेला, कौन है मृग और
कौन मृगया, सब कुछ
है अनागत के
गर्भ में
समाहित, खोने और पाने के मध्य
ही छुपा है जीवन का सारांश,


मैं स्याही की बूंद हूं जिसने 
जैसा चाहा लिखा मुझे
मैं क्या हूं कोई ना जाने 
अपने मन सा गढा़ मुझे।

भटक रही हूं अक्षर बनकर 
महफिल से वीराने में
कोई मन की बात न समझा 
जैसा चाहा पढ़ा मुझे।


शाम से आँख में नमी-सी है,
आज फ़िर आपकी कमी-सी है

दफ़न कर दो हमें कि साँस मिले,
नब्ज़ कुछ देर से थमी-सी है

वक्त रहता नहीं कहीं छुपकर,
इसकी आदत भी आदमी-सी है

कोई रिश्ता नहीं रहा फ़िर भी
एक तस्लीम लाज़मी-सी है।


आज या ख़ुद को रुला लें 
चित्र अनदेखा सा इक उभरा हुआ है
रौशनी का हर क़दम ठहरा हुआ है
सब हुलासें सब मिठासें गुम गयी हैं
मन का चेहरा आजकल उतरा हुआ है 
दूधिया एकांत का उबटन लगा लें
मुस्कुरा लें आज या ख़ुद को रुला लें 

बस आज इतना ही
कल पता नही कौन..

3 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति एवं आकर्षक संकलन - - असंख्य धन्यवाद - - नमन सह।

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  2. समकालीन रचनाएँ
    उत्कृष्ट

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