सादर वन्दे
अट्ठारहवी तारीख सितम्बर की
महीना गुजर गया...
मल-मास है अभी..सुना है कि
सारे देवता इस माह में ब्रज भूमि मे डेरा डाले पड़े रहते हैं
पड़े रहें हमें क्या....
आज की रचनाएँ पढ़ें.....
थीं तुम गुमसुम गुड़िया जेसी
शांत सोम्य मुखमंडल तुम्हारा
मन मोहक मुस्कान तुम्हारी
सब से प्यार करनेवाली
सब से प्यारी सबकी दुलारी
बचपन से ही थीं ऐसी
मौत के बाद आये हैं जिनको ।
दम निकलने से पहले आना था ।।
चार कंधे नसीब भी न हुए ।
साथ जिसके खड़ा जमाना था ।।
रिन्द प्यासा गया तेरे दर से ।
जाम कुछ तो उसे पिलाना था ।।
तुम्हारे मुक़ाबिल, यहाँ सब कुछ
है हासिल, कभी जो क्लिप
लगाना भूल गए, तो
देखा उम्मीद की
डोरी से सभी
ख़्वाब
उड़ गए, सुदूर आकाश पथ में,
ऐसे ना थे नसीब की ज़िंदगी सवर जाती,
यू न उजड़ती तो किसी और तरह उजड़ जाती..
ख़ून के से खूट पी ता रहा उम्र भर,
तू जो मुझे ज़ी लेती थोड़ा,तो मर जाती,
काम होते रहेंगे
उसी तरह से
मिलबाँट कर भाईचारे के साथ
आजाद भारत में शुरु किये धँधों का
बाजार और भी चमकदार हो जायेगा
पहचान
गुप्त रखी जायेगी
सीटीबजाने वाले की
पास हुऐ बिल में बताया भी जा रहा है
सीटी बजाने वाला
बहुत सारे कमीशन
पाने का हकदार भी हो पायेगा
...
बस..
दीदी की तबियत थोड़ा नरम है
बस ज़रा सी नरम
सादर
आभार दिव्या जी।
ReplyDeleteव्वाहहहहह
ReplyDeleteबेहतरीन..
सादर..
सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteमौत के बाद आये हैं जिनको ।
दम निकलने से पहले आना था ।।
चार कंधे नसीब भी न हुए ।
साथ जिसके खड़ा जमाना था ।।
वाह
उम्दा संकलन |मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
ReplyDeleteसभी स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें
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