Saturday, June 6, 2020

377 आँसू समझ के


राजेंद्र कृष्ण
हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध गीतकार का आज जन्मदिन है यूँ तो इनके रचे गीत चुप चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है वो भूली दास्ताँ लो फिर याद आ गयी मेरे महबूब क़यामत होगी छूप गया कोई रे, दूर से पुकार के कौन आया मेरे मन के द्वार ये जिंदगी उसी की है ज़रूरत है ज़रूरत है एक श्रीमती की मै चली मै चली देखो प्यार की गली मेरे सामने वाली खिड़की में देखा न हाय रे सोचा न हाय रे कोई कोई रात ऐसी होती हो पल पल दिल के पास तुम रहती हो कर्णप्रिय गीत आपने सुने ही होंगे। आज पढ़िये मेरी पसंद के कुछ नग्में

(१) आँसू समझ के क्यों मुझे --------- आँसू समझ के क्यों मुझे आँख से तूने गिरा दिया किसी के प्यार का मोती मिट्टी में क्यों मिला दिया आँसू समझ के क्यों मुझे गाया गया हूँ जिस पे मैं टूटा हुआ वो साज़ था नग़्मा हूँ कब मगर मुझे अपने पे कोई नाज़ था -२ आँसू समझ के क्योँ मुझे ... जिस ने सुना वो हँस दिया, हँस के मुझे रुला दिया जो ना चमन में खिल सका मैं वो गरीब फूल हूँ आँसू समझ के क्यों मुझे ... जो कुछ भी हूँ बहार की छोटी सी एक भूल हूँ जिस ने खिला के खुद मुझे, खुद ही मुझे भुला दिया मेरी ख़ता मुआफ़ मैं भूले से आ गया यहाँ आँसू समझ के क्यों मुझे... वरना मुझे भी है खबर मेरा नहीं है ये जहाँ डूब चला था नींद में अच्छा किया जगा दिया

(२) रंग दिल की धड़कन ---- रंग दिल की धड़कन भी लाती तो होगी याद मेरी उनको भी आती तो होगी रंग दिल की धड़कन भी लाती तो होगी याद मेरी उनको भी आती तो होगी प्यार की खुशबू कहाँ आती थी कलियों से हो के आई है हवा भी उनकी गलियों से प्यार की खुशबू कहाँ आती थी कलियों से हो के आई है हवा भी उनकी गलियों से छू के उनके दामन को आती तो होगी रंग दिल की धड़कन भी लाती तो होगी ये बहारें ये सामान सब उसके दम से है वो पिया कुछ कुछ खफा रहता जो हमसे है जान कुछ कुछ उसकी भी जाती तो होगी रंग दिल की धड़कन भी लाती तो होगी जा री ऐ तितली नागरिया पी की तू जाना हो भला तेरा ख़बर कुछ उनकी ले आना जा री तितली नागरिया पी की तू जाना हो भला तेरा ख़बर कुछ उनकी ले आना तू वहाँ पे वैसे भी जाती तो होगी रंग दिल की धड़कन भी लाती तो होगी.


(३)

मेरी दास्तां मुझे ही

----

मेरी दास्तां मुझे ही
मेरा दिल सुना के रोये
कभी रो के मुस्कुराये
कभी मुस्कुरा के रोये 

मेरी दास्तां मुझे ही..

मिले गम से अपने फ़ुर्सत
तो मैं हाल पूछूँ उसका 
शब-ए-ग़म से कोई कह दे 
कहीं और जा के रोये 

मेरी दास्तां मुझे...

हमें वास्ता तड़प से 
हमें काम आँसुओं से 
तुझे याद कर के रोये 
या तुझे भुला के रोये 

मेरी दास्तां मुझे ही… 
वो जो आज़मा रहे थे
मेरी बेक़रारियों को 
मेरे साथ-साथ वो भी 
मुझे आज़मा के रोये 

मेरी दास्तां मुझे ही...

★★★

एक गुमनाम शायर 
शौक़ बहराइची
६ जून १८८४ को जन्म हुआ था।
हास्य-व्यंग्य की शायरी के लिए

शौक़ बहराइची
६ जून १८८४ को जन्म हुआ था।
हास्य-व्यंग्य की शायरी के लिए
विख्यात रहे।नेताओं व ग़लत कार्यों में लिप्त व्यक्तियों पर कटाक्ष करने के लिए नीचे दिया गया शेर देश में सर्वाधिक इस्तेमाल होता है पर बहुत कम ऐसे लोग हैं, जिन्हें यह पता होगा कि इस शेर को लिखने वाले
शायर का नाम 'शौक़ बहराइची' है।
‘बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी है हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा।’
मुझे इनकी गज़ले समझ नहीं आयी आप पढ़कर देखिये शायद आप समझ सकें।

अक़्ल की कुछ कम नहीं है रहबरी मेरे लिए
हर तरफ़ लाईट है हर-सू रौशनी मेरे लिए

अब कहाँ है हुस्न में वो दिलकशी मेरे लिए
रह गई हंडियाँ में ख़ाली खुर्चुनी मेरे लिए

आतिश-ए-क़हर-ए-ख़ुदा दम भर में कर देती है गुल
  है मिरी तर-दामनी ऐ ''अर-पी'' मेरे लिए
 
उन के तेवर मेहरबाँ उन की निगाहें मुल्तफ़ित
दे रही है ज़ोर पूरी पार्टी मेरे लिए

सैकड़ों जीने में लाले लाखों रख़्ने ज़ीस्त में
  किर्म-ख़ुर्दा ऐ ख़ुदा ये ज़िंदगी मेरे लिए
  
अहल-ए-महशर ले गए क़हर-ओ-ग़ज़ब सब लूट कर
सिर्फ़ इक रहमत ख़ुदा की रह गई मेरे लिए दिल में

रंग-ओ-रोग़न-ए-दहक़ाँ का रहता है ख़याल
रोज़-मर्रा गाँव से आता है घी मेरे लिए

जब मैं जानूँ ख़िदमत-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा करते हैं आप
ढूँड दीजे कोई औरत शैख़-जी मेरे लिए

शुक्र है अल्लाह का हिन्दोस्ताँ में है क़याम
याँ ज़नानों की नहीं है कुछ कमी मेरे लिए '

शौक़' टपका पड़ रहा है रू-ए-जानाँ से शबाब
सामने रक्खी हुई है रस-भरी मेरे लिए

 आइये चलते-चलते एक और गीत सुन लीजिए
चाँद जाने कहाँ छुप गया
आज की प्रस्तुति पर
आपके विचार सादर आमंत्रित हैंं।

कल फिर मिलिए यशोदा दी से।

4 comments:

  1. श्वेता, नायाब प्रस्तुति , जो मेरे सब से प्रिय गीतकार के नाम है। बहुत -बहुत शुक्रिया और आभार, दिवंगत कवि का स्मरण कराने के लिए ,जिन्होंने सरल शब्दों में भावनाओं के अनंगिन रंग समेटकर , कविता की आत्मा को फिल्मी गीतों में भी जिंदा रखा । संगीतकार मदनमोहन जी के साथ जिनका सबसे सुंदर मणिकांचन योग रहा और मधुर धुनों में सजकर जहाँ आरा जैसी अनेक फिल्मों के कालजयी गीत अस्तित्व में आये।तीसरे सहभागी तलत महबूब इनके गीत गजलों को गाकर अमर गायकों की श्रेणि में आये । मरहूम शायर की पुण्य स्मृति को कोटि नमन 🙏🙏 वो भी जहाँआरा फिल्म की एक उनकी लिखी ग़ज़ल के साथ-----+
    फिर वोही शाम वही ग़म वही तनहाई है
    दिल को समझाने तेरी याद चली आई है

    फिर तसव्वुर तेरे पहलू में बिठा जाएगा
    फिर गया वक़्त घड़ी भर को पलट आएगा
    दिल बहल जाएगा आखिर ये तो सौदाई है
    फिर वोही शाम ...
    जाने अब तुझ से मुलाक़ात कभी हो के न हो
    जो अधूरी रहे वो बात कभी हो के न हो
    मेरी मंज़िल तेरी मंज़िल से बिछड़ आई है
    फिर वोही शाम
    फिर तेरे ज़ुल्फ़ के रुखसार की बातें होंगी
    हिज्र की रात मगर प्यार की बातें होंगी
    फिर मुहब्बत में तड़पने की क़सम खाई है
    फिर वोही शाम ...
    शौक साहेब की गजल आधी समझ आई आधी नहीं। उनका ये एक शेर ही उन्हे दुनिया में अमर कर गया।दिवंगत शायर शौक को विनम्र श्र्द्धांजली।🙏🙏
    एक बार फिर हार्दिक आभार🙏

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  2. तुम्हारी पसंद 👌👌👌👌सभी गीत एकदम बढिया👌👌। आज यही सब सुनूँगी😊😊

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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