Sunday, June 28, 2020

399..कुत्ते का भौंकना भी सब की समझ में नहीं आता है पुत्र

नमस्कार..
कल बहना आई थी
लिख-पढ़ कर गई
काफी दिनों के बाद ब्लॉग जगत
में वापसी हुई है..
आभार..भूली नहीं है वो

चलिए आज की रचनाओं की ओर ...
माँ-बाप का दुत्कारत हैं
औ कूकुर-बिलार दुलारत हैं
यहि मेर पुतवै पुरखन का
नरक से तारत है
ड्यौढ़ी दरकावत औ
ढबरी बुतावत है


फिर ऐसे ही निर्जीव सा
बैठा हैं तू  भला क्यों  ?
बना कोई प्रयोजन अहो!
निकाल कुछ सार अहो!
फिर  किस्मत चमकेगी तेरी


कैसा दुर्भाग्य ? तेरा भाग्य 
सर्वोदय की कल्पना , 
बुनता हुआ विचार, 
स्वर्णिम कल्पना को आकार देता , 
खंडित करता , फिर 
उधेड़ देता लोगों का विश्वास , 
नवोदय का आधार 


क्षीण होती, परछाईंयाँ,
डूबते सूरज,
दूर होते, रौशनी के किनारे,
तुम्हारे जाने,
फिर, लौट न आने,
के मध्य!
छूटता हुआ, भरोसा,
बोझिल मन,
और ढ़लती हुई,
उम्मीद की,
किरण!


गगन से बरसा मौत अगन का
तड़ित समाधि बना निर्मम सा
छीन लिया कुंकुम की आभा
रूप सुहागन की सुख शोभा.
शाप ताप की ज्वाला बनकर
कुपित प्रलय दर्शाया भू पर



मैंने
बच्चे को
अपने 
कुत्ते का
उदाहरण 
देकर बताया 

क्यों
भौंकता रहता है 
बहुत बहुत
देर तक 
कभी कभी

इस पर 
क्या
उसने कभी 
अपना
दिमाग लगाया है 

क्या
उसका भौंकना 
कभी
किसी के समझ
में 
थोड़ा सा भी
आ पाया है 
....
इति शुभम्
सादर

6 comments:

  1. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति और मुझे भी हिस्सा बनने का सौभाग्य । पटल पर सभी रचनाकारों को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।

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  2. भावुकता से भरी हुई रचनायें, बेहतरीन प्रस्तुति

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  3. बहुत सुंदर संकलन रचनाओं का

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  4. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ,सभी साथियों को बधाई ,आपका हार्दिक आभार ,बहुत बहुत धन्यवाद ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए

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  5. This comment has been removed by the author.

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