Tuesday, June 16, 2020

387 ..नीरवता में भी रंग ही हैं बोल बनते रंग बिखेरते गुलमोहर

सादर अभिवादन..
देखते ही देखते
महीना गुज़र गया
घर मे बैठे-बैठे
और बारिश आ गई
एक तआज़्ज़ुब
कभी आपने
आड़ा पिरामिड देखा है
नहीं न
यहाँ देखिए

अब चलिए रचनाओं की ओर ...

बदरंग मन में
रंग भरते गुलमोहर
निराश हृदय को
आस दिलाते गुलमोहर
खिलते रहो
उदासियों में भी
जीवन्त रहो
नीरवता में भी
एक रंग ही हैं
बोल बनते
रंग बिखेरते गुलमोहर।


Epidemic, Coronavirus, Lurking
न जाने कहाँ से चले आ रहे हैं 
इतने सारे थके-थके कदम,
भूखे पेट का बोझ लादे.
सामान का बोझ कम हो सकता है,
पर भूखे पेट का कैसे कम हो?


अब कहते हैं हमने उसको ,
छिप- छिप अश्रु बहाते देखा ।
पीड़ा विगलित दुखी हृदय को ,
कैसे कर पाये अनदेखा ।

जड़ विहीन नकली दुनिया में ,
अपना नीड़ बसाये कैसे ?
जीवन बगिया उलझा मांझा ,
उलझन को सुलझाये कैसे ?


ये तुमको खबर नहीं जानिब 
अंजाम ए वफा क्या होता है
यह दुनिया दो दिलवालों को 
दीवारों में चुनवाती है।


पहाड़ी झरने में मिलकर
बरसात का पानी ले जाता है जीवन।

बूढ़ा होना अचानक आएगा
जैसे आ जाती है अचानक छींक।

एक पागल कवि जानता है कि
लड़की बुखार में नहीं प्रेम में है।
...........
आज इतना ही
कल फिर
सादर

4 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति

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  2. वाह.....लाज़बाब प्रस्तुति।

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  3. सुन्दर अंक. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.

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  4. :)

    यहाँ मेरी उपस्थिति है इसके लिए तहे दिल से धन्यवाद।

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