Tuesday, June 23, 2020

394 ..चंद्रमा सुना है एक ही चीज को दिखा कर एक को कवि एक को पागल बनाता है

सादर अभिवादन

आज रथ दूज है
बारिश हो रही है रात से
मानसून की बारिश का
आनन्द ही अलग रहता है
..
देखिए आज की रचनाएँ..

सोचती हूँ 
उसकी नींद का 
ख्वाब बन जाऊं...
उसे वैसे ही दिक् करूँ 
जैसे वो मुझे करता रहा है...
ख्वाब का यह ख्याल भी कितना सुंदर है.

एहसासों का समंदर है 
भावनाओं की कश्ती है 
ख्वाबों का साहिल है 
धुन्ध में भी आँखों में मस्ती है। 

लिख दूँ तो हासिल है 
छुपा लूँ तो कातिल है। 


स्वयं की सार्थकता दर्शाते 
पंखविहीन वे उड़ान भरना चाहते हैं।   
दुविधा में फिरते मारे-मारे   
बीनते  रुखी-सूखी डाले समय की 
सभ्यता के जंगल में विचरते
 लिबास बदलते ऐसे बहुरुपिये बहुतेरे हैं। 


हम से पूछो तो ज़ुल्म बेहतर है 
इन हसीनों की मेहरबानी से 

और भी क्या क़यामत आएगी 
पूछना है तिरी जवानी से 

“एक होता है 
साहित्‍यकार और 
एक होती है 
साहित्‍य की दुकान। 
अब चूंकि मैं ज्‍योतिषी हूं तो 
ज्‍योतिष की बात भी कर लेते हैं। 
साहित्‍यकारों में एक होते हैं कवि, 
मैंने आमतौर पर कवियों का 
चंद्रमा खराब ही देखा है। 
बारहवें भाव में चंद्रमा हो तो 
जातक एक कॉपी छिपाकर रखता है, 
जिसमें कविताएं भी लिखता है”।
...
बस
कल फिर
सादर



6 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति

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  2. सादर आभार आदरणीय दीदी मेरे सृजन को स्थान देने हेतु .
    सादर

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  3. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

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  4. खूबसूरत प्रस्तुति

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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