Tuesday, June 9, 2020

380.आपकी हर सोच सही होगी, और होना भी होना चाहिए

सादर स्वाभिमान कायम रहे
चौमासा शुरु होने वाला है...
संत महात्मा अपना प्रवास बंद कर
किसी मंदिर देवालय में 
शरण लेने की तैय्यारी में
एक स्वयंसिद्ध विचार ...
संसार का हर प्राणी कष्ट से बचना चाहता है
लेकिन वह कष्ट के कारणों से नहीं बचना चाहता
अब हम कष्ट के कारण से बचना सीख रहे हैं
...
चलिए कुछ पढ़े-लिखें..

कण-कण में सुगंध उसके
हवा-हवा महक जिसके
चढ़ भाल सजा नारायण के
पोर -पोर शीतल बनके।

ये सुनसान फैली सड़क है
लैम्प पोस्ट की रौशनी में
चमचमाते भवन हैं
एक के बाद एक
सब में मरे पड़े हैं आदमी

मेरी फ़ोटो

कविता हूँ मुक्त विचरती हूँ, 
मैं मानव होने का प्रमाण , 
पहचान बताऊं कैसे मैं ,
हर भाव ,रंग में विद्यमान . 
अवरुद्ध पटों को खोल,
वर्जनाहीन अकुण्ठित बह चलती, 
जो सिर्फ़ उमड़ता बोझिल सा, 
मैं सजल प्रवाहित कर कहती. 


"विधि का विधान जान, हानि लाभ सहिये,
 जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये।"
या ... जिन्दा हो मौन ये मान कर कि ..
"विधि -विधान किसी के मिटाए मिटता नहीं " 


हरियाली फूल मौसम और आसमान
मुँडेरें इनकी हैं जीवन का उपमान ।

धरती के मुखड़े पर
बादल की छाँव
आज देखा शहर में
...
आज बस
कल फिर
सादर









5 comments:

  1. अनुरूप प्रस्तावना के साथ चुनी हुई प्रस्तुतियाँ .सबसे अच्छी बात कि एक ही बैठक में पूरी रुचि के साथ आनन्द लेना संभव है .

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  2. आभार आपका यशोदा बहन .. इस आज की इंद्रधनुषी प्रस्तुति के बीच मंच पर मेरी रचना/विचार को जगह देने के लिए ...

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  3. बहुत सुंदर चिंतन परक भूमिका ।
    शानदार प्रस्तुति।
    सुंदर रचनाओं का सरस संगम, सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहेदिल से शुक्रिया

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