Friday, June 5, 2020

376 तपती धरती प्राणवायु को तरसती है जनता

लगना ही चाहिए
धारा 376
उन सब पर..जो
अनाधिकृत दोहन करते हैंं
प्रकृति का..
प्राणवायु को तरसती है जनता
कल सानन्द मनाया गया
विश्व पर्यावरण दिवस
..
अब चलें रचनाओं की ओर....

ओ चित्रकार, 
क्या तूने अपने चित्र पर 
विश्लेषणात्मक नजर डाली?? 
कितनी खूबसूरती से तेरी कूची ने 
सजाई थी इस सृष्टि को 
अपने कोरे केनवास पर, 
कहीं गुंजायमान था 
पखेरुओं का कलरव मधुर गान 


राह सारे  खो जाते हैं,
भाग्य भी यूं रूठ जाते हैं,
सन्नाटा और निराशा बस,
साथ अपने रह जाते हैं,
जिजीविषा जो सबसे प्यारी
पूरी तरह से हार जाती है,

कागज पर जो छपते अक्षर
काले रंग ही होते अक्सर
अभिव्यक्ति बन जाती बेहतर
सदचिंतन देती उर में भर .
श्याम रंग से लिखी इबादत
अंतस की बन जाती चाहत
चित भले हो कवि का काला
शुभ्र पंक्तियाँ भर देते उजाला


करती है कैसी सियासत मुहब्बत भी तो
ज़िन्दगी को हर क़दम देना इम्तिहान होता है
लगे ईश्क में मुद्दत सा हर पल हर लम्हा जुदाई का
आँखों में पलते अज़ीब ख़्वाब लब पे दर्दे जाम होता है ।


बीती जवानी और बीते दिन सुनहरे,
ख़ुशी की चाहत थी,घाव मिले गहरे,
तोलता हूँ जब जीवन,कैसा बीता है,
कितना ये भरा और कितना रीता है,
घूमा इन हांथों में रेत सा समय लिए,
प्रयास अथक,पर हाथ खाली से हुए,
ये ज़िन्दगी बनी इक रिक्तता और जुस्तजुएँ हजार हैं। 


दोस्त दुश्मन बने जिन्दगी की राह पर
अपने पराये न खोज कर पाता हूँ मैं

हार मान लूँ जो यहाँ ये मुनासिब नहीं
पर स्वयं से ही नहीं जीत पाता हूँ मैं

तोड़ दूँ असूलों को यहाँ गवारा नहीं
कायदों पे कभी नहीं टिक पाता हूँ मैं


4 comments:

  1. तमाम मुसीबतों के मध्य प्रस्तुति
    खेद है हमें, मदद नहीं कर पाए..
    सखेद..

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  2. रचनाओं का सुंदर संकलन।

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  3. अति सुन्दर रचना प्रस्तुति

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