Wednesday, June 3, 2020

374..पीढ़ी नव कहती, नया आया है जमाना

सादर नमस्कार
अनलॉक-1 का तीसरा दिन
भीड़ बढ़ी सड़कों पर
बेतरतीब
दूसरे देशों की तरह
हुई बेकाबू...
चलिए होगा वही
जो ईश्वर चाहेगा
दूसरे देशों से हमारा भारत
ज़ियादा सुरक्षित है

चलिए पिटारा खोलें.....

परिंदा ...ओंकार

एक परिंदा डरते-डरते 
मेरी खिड़की पर आया,
फिर उड़ गया,
अगले दिन फिर आया,
एक पैर खिड़की के अन्दर रखा,
फिर उड़ गया.


कौशल ...विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता'

"अरे! रामरतन! बहुत दिनों के बाद दिखलाई दिए। कैसे हो और कहाँ रहे?"रोमा ने पूछा।
"मैडम जी पिंजड़े में ही था !" रामरतन ने कहा
"यह क्या है तुम्हारे पास सदा साथ देने वाला तुम्हारा सब्जियों वाला ठेला कहाँ गया? हमें बहुत सहूलियत रहती थी..।" रोमा सवालों के मशीनगन दाग रही थी।


विडम्बना ...सुबोध सिन्हा

ये कविताएँ
शब्दकोश से सहेजे
शब्दों का महज मेल भर नहीं
जो लाए पपड़ाये होंठों पर
मात्र एक बुदबुदाहट।


इश्क है मेहमान दिल में ....अरुणिमा सक्सेना

लाड़ से उसने निहारा क्यों नहीं
और नज़रों का इशारा क्यों नहीं ।।

इश्क मे ऐसा अजब दस्तूर है
वो किसी का है हमारा क्यों नहीं ।।


पीढ़ी अंतराल ....सुधा सिंह व्याघ्र

पीढ़ी अंतराल,बड़ा मचाता है बवाल 
रोते हैं बुजुर्ग,उठा घर में है भूचाल।।

पीढ़ी नव कहती, नया आया है जमाना।
इनको तो बस है, हमपे हुक्म ही चलाना।
...
आज के लिए काफी
सादर




4 comments:

  1. सुंदर रचनाएँ

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  2. सुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल करने के लिए शुक्रिया.

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  3. सुंदर लिंक्स... मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद आदरणीय।

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  4. हार्दिक आभार आपका

    श्रम साध्य कार्य हेतु साधुवाद

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