Wednesday, June 24, 2020

395 ...फ़िरोज़ा रंग की शाँत ठहरी झील

नमस्कार
कुछ शांत है शहर
भयातुर है न शायद इसीलिए
एक छोड़ दूसरी गली
सील हो रही है
बेवड़ों को कोई असर नहीं
बस तलाश रहे है ..
आज का तो हो गया
कल के लिए शायद
कोई 
जुगाड़.,....
आज की रचनाएं....


मत लौटना ...ओंकार केडिया

बेटे,
बहुत राह देखी तुम्हारी,
बहुत याद किया तुम्हें,
अब आओ, तो यहीं रहना,
खेत जोत लेना अपना,
छोटा-मोटा धंधा कर लेना,
रूखा-सूखा खा लेना,
जैसे भी हो, जी लेना।

आँखें यूहं स्थिर हो गयी थी जैसे 
खुद में समा लेना चाहती हों  इस  दृश्य को।  
फ़िरोज़ा रंग  की शाँत ठहरी झील। 
मैंने आजतक कभी ऐसा रंग नहीं देखा था 
पानी का- फ़िरोज़ा, दूधिया- फ़िरोज़ा । 
झील शाँत तो थी मगर किनारों में 
पानी हलकी हलकी थपेड़े मार के 
अपने जीवित होने का संकेत दे रहा था।


सच पूछो तो,
ज़िन्दगी रेत सी हो गई है!
दिन ब दिन फिसलती जा रही है,
जितना समेटने की कोशिश कर रहा हूँ,
उतना ही फिसलती जा रही है |


नभ के दामन से कल इक सितारा गिरा...
माँ के आँचल का सूना हुआ फिर सिरा...
माँ को फ़ुर्सत ना थी पर दो आँसू गिरे...
भाई तकते रहे बस खड़े ही खड़े...

वो भी अंतिम सफ़र को बिलखते चला...
इतना रोता रहा की वो खुद बुझ गया...
माँ भी खाली जगह को यूँ तकती रही...
मोती यादों के चुन चुन के रखती रही...


जहाँ किया मन हवस मिटा ली...
नाम बन गया है बस गाली...
झुंड बना कर घूम रहे हैं....
लोभी अवसर ढूँढ रहे हैं...

मन नंगा तन पे लत्ते हैं...
हाँ भैया हम तो कुत्ते हैं...


मिन्नतें रोटी की वो करता रहा...
मैं भी मून्दे आँख बस चलता रहा...

आस में बादल की, धरती मर गयी...
फिर वहाँ मौसम सुना अच्छा रहा...

दूर था धरती का बेटा, माँ से फिर...
वो हवा में देर तक लटका रहा...
...
आज की अंतिम तीन रचनाएँ
एक बंद ब्लॉग से है
सादर..


3 comments:

  1. .फ़िरोज़ा रंग की शाँत ठहरी झील

    आहा आपने संकलन के आरम्भ ये पंक्ति लिखी , बहुत प्रसन्नता हुई


    आस में बादल की, धरती मर गयी...
    फिर वहाँ मौसम सुना अच्छा रहा...
    बहुत अच्छा लेखन
    सभी रचनाकारों को बधाई ,

    मेरे लेख को अपनी चयन सूची में स्थान देने के लिए आभार

    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  2. सुन्दर सुन्दर रचनाएँ

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  3. सुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया.

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