आज का खास..
आज हेलेन केलर का जन्म दिवस है
हेलेन एडम्स केलर
दृष्टि तथा श्रवण शक्ति से बाधित
अदम्य उत्साही व साहसी महिला
नमन,वन्दन
........
चमत्कार को नमस्कार..
आज हेलेन केलर का जन्म दिवस है
हेलेन एडम्स केलर
दृष्टि तथा श्रवण शक्ति से बाधित
अदम्य उत्साही व साहसी महिला
नमन,वन्दन
........
चमत्कार को नमस्कार..
घोर तआज़्ज़ुब..
आज मैं यहाँ हूँ..
क्यों हूँ और कैसे आई..
चलिए आ ही गई हूँ तो
ये पढ़िए..
ना ही रहने को आलिशान घर चाहिए।
ना ही बसने को बड़ा-सा शहर चाहिए।
जिसकी गलियों में कूड़े की ढेर न हो,
हमको गंदगी से परे वो नगर चाहिए।
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
काली सियाह रात के अँधेरे में दूर तक जाती सड़क
सड़क के किनारे-किनारे ऊँचे घने सियाह पेड़
तेज़ हवा के थपेड़ों से जोर शोर से झूमते-घुमड़ते
इक पल को मुझे लगा के वो मुझे कुछ बताना चाहते हों
जैसे दिनों से इक राज़ हवा ने सीने में दबाया हो
सो ये पेड़ चाहते हो बताना मुझे वो गहरा राज़
मैं नज़रे गढ़ा देर तक उन्हें देखती रही,सुनती रही
शुष्क साँसे थम रही हैं, शब्दों का तुम पान दो
भींच कर छाती से मुझको, अधरों पे मेरा नाम लो
किस घड़ी ये साँस छूटे, देह हो पार्थिव मेरी
पुष्प लेकर अंजलि में, शूल का आभास करने
प्रेम का रिश्ता निभाए, तुमको आना ही पड़ेगा
सोच रहा था एक बात रमैया की कही
जीवन में नशा न किया तो क्या किया
बार बार गूँज रहे थे शब्द उसके कानों में
पर भूला नुक्सान कितना होगा तन मन को |
अपना आपा खोकर सड़क पर झूमते झामते
गिरते पड़ते लोगों को आए दिन देखता था
..........
बस
हमारी परी की क्लास शुरु होने वाली है
सादर
क्यों हूँ और कैसे आई..
चलिए आ ही गई हूँ तो
ये पढ़िए..
ना ही रहने को आलिशान घर चाहिए।
ना ही बसने को बड़ा-सा शहर चाहिए।
जिसकी गलियों में कूड़े की ढेर न हो,
हमको गंदगी से परे वो नगर चाहिए।
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
काली सियाह रात के अँधेरे में दूर तक जाती सड़क
सड़क के किनारे-किनारे ऊँचे घने सियाह पेड़
तेज़ हवा के थपेड़ों से जोर शोर से झूमते-घुमड़ते
इक पल को मुझे लगा के वो मुझे कुछ बताना चाहते हों
जैसे दिनों से इक राज़ हवा ने सीने में दबाया हो
सो ये पेड़ चाहते हो बताना मुझे वो गहरा राज़
मैं नज़रे गढ़ा देर तक उन्हें देखती रही,सुनती रही
शुष्क साँसे थम रही हैं, शब्दों का तुम पान दो
भींच कर छाती से मुझको, अधरों पे मेरा नाम लो
किस घड़ी ये साँस छूटे, देह हो पार्थिव मेरी
पुष्प लेकर अंजलि में, शूल का आभास करने
प्रेम का रिश्ता निभाए, तुमको आना ही पड़ेगा
सोच रहा था एक बात रमैया की कही
जीवन में नशा न किया तो क्या किया
बार बार गूँज रहे थे शब्द उसके कानों में
पर भूला नुक्सान कितना होगा तन मन को |
अपना आपा खोकर सड़क पर झूमते झामते
गिरते पड़ते लोगों को आए दिन देखता था
..........
बस
हमारी परी की क्लास शुरु होने वाली है
सादर
आभार दिबू..
ReplyDeleteसादर..
वाह! सार्थक भूमिका और बहुत सुन्दर रचनाएँ। सोने में सुहागा।
ReplyDeleteदिव्या जी नमस्ते,
ReplyDeleteस्वागत है आपका दी को ज़रा राहत तो होगी:))
सराहनीय प्रस्तुति सुंदर रचनाएँ।
दुष्यंत कुमार तो बस लाज़वाब।
वाह दिव्या! बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।
ReplyDeleteदिव्या जी नमस्ते,
ReplyDeleteसार्थक भूमिका
हेलेन केलर जी को नमन वन्दन
बहुत सुन्दर रचनाएँ, सार्थक प्रस्तुति।
सादर आभार
.
उम्दा लिंक्स|मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
ReplyDeleteसुंदर,सुभग उत्कृष्ट रचना प्रस्तुति
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