स्नेहिल अभिनन्दन
जा रहा है बिचारा जून
आँखें पोछते-पोछते
सारे त्योहार आने को आतुर हैं
आँखें पोछते-पोछते
सारे त्योहार आने को आतुर हैं
सहमी सी हैं नारी जाति
कैसे मनेगा हल छठ
कैसे मनेगा हल छठ
और कैसे मनेगी तीज
कैसे आएगा कान्हा
और विघ्नविनायक
का क्या होगा..
...
मेरा तो रोना सम्पन्न हुआ
अब रचनाएँ देखें....
कैसे आएगा कान्हा
और विघ्नविनायक
का क्या होगा..
...
मेरा तो रोना सम्पन्न हुआ
अब रचनाएँ देखें....
इष्टदेव के समक्ष
डबडबायी आँखों से
निर्निमेष ताकती
अधजली माचिस की तीलियों
बुझी बातियों से खेलती
बेध्यानी में,
मंत्रहीन,निःशब्द
तुलसी सींचती
दीये की जलती लौ में
देर तक बनाती कोई छवि
वह उदास औरत...।
एक तेरी खुशी के ख़ातिर हम
नंगे पैर, दौड़ चले आते थे ।
एक तू है, जिसे हमारे आने की,
सुना है घंटों ख़बर नहीं मिलती ।
संध्या और चन्द्रमा का
आकर्षण और विकर्षण
अनुराग और वीतराग का
यह खेल सदियों से
इसी तरह
चल रहा है ,
सुख के समय में
संयत रहने का और
दुःख के समय में धैर्य
धारण करने का सन्देश
हमें दे रहा है !
प्रिय वर्तमान,
जब यह चिट्ठी तुम्हारे हाथ में होगी,
मैं तुमसे बहुत दूर जा चुका होऊँगा
तुम्हारे पास उस समय इतना वक़्त भी नहीं होगा
कि तुम मेरे बारे में विचार कर सको
तुम्हें भविष्य की फ़िक्र है, होनी भी चाहिए
वॉन गॉग हर खत में
अपने भाई थियो को लिखता था
मुझ पर भरोसा रखना
एक सदी से ज़्यादा हो गए हैं
नीव उठाते वक़्त ही
कुछ पत्थर थे कम ,
तभी हिलने लगा
निर्मित स्वप्न निकेतन ।
उभर उठी दरारे भी व
बिखर गये कण -कण ,
...
आज बस
कल फिर
सादर..
...
आज बस
कल फिर
सादर..
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति .मेरे सृजन को स्थान देने हेतु सादर आभार आदरणीय यशोदा दीदी .
ReplyDeleteसादर
प्रस्तुति सुंदर रही
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सूत्रों का संकलन इस अंक में ! कल से नेट बाधित था यशोदा जी ! विलम्ब से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ! मेरी रचना को अंक में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय सखी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद ,आपका हार्दिक आभार यशोदा जी ,आप की मेहनत रंग लाई
ReplyDeleteउम्दा संकलन |
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