शुक्रवार
अनलॉक का पता नही कितने दिन हो गए
पर लग रहा है लॉकडाऊन के माफिक
भयभीत कर गया लोगों को
कॉलोनी की सड़के सूनी..
बच्चे भी घर के अंदर ही हैं
....
चलिए चलें रचनाओं की ओर
मिर्च अनंत, तीखापन अनंता ..गगन शर्मा
हमारे देश में सबसे तीखी मिर्च असम की भूत जोलोकिया मानी जाती है, जिसे घोस्ट पेप्पर, यू मोरक या लाल नागा भी कहा जाता है ! शायद इसके तीखेपन के कारण ही इसका नाम भूतिया पड़ गया हो ! आम मिर्चों से जिनका ''एसएचयू'' तकरीबन 5000 के आस-पास होता है, इसका तीखापन है, करीब चार सौ गुना ज्यादा होता है। जबकि इस जाति की सबसे शरीफ मिर्च है हमारी शिमले वाली, जिसके नाम में ही सिर्फ मिर्च है, उसका आंकड़ा शून्य ही होता है,
है ना गजब..........!
रेखाएँ ...सुधा सिंह व्याघ्र
रेखाएँ बहुत कुछ कहती हैं...
उदासीनता, निस्संगता का
सुदृढ़ रूप रेखाएँ,
निर्मित होती हैं भिन्नताओं के बीच
दो बहिष्कृतों के बीच
दो सभ्यताओं के बीच
एक मोटी दीवार सी
दो सोच के बीच
अमीर और गरीब के बीच
मदांधता ...विभा रानी श्रीवास्तव
abc: बता दीजिये ना, ये तो जो मुझे कागज़ पर लिखा मिला मैंने उसे टाइप कर दिया। हाँ कुछ जगह मेरे कारण स्पेलिंग मिस्टेक जरूर हुआ है..
xyz: शुरू में ही विधाओं को विद्याओं किया हुआ है... पूरा शाम तक बताते हैं..
abc : इंतज़ार करेंगे: ये तो मेरी गलती है
xyz : गलती कम हड़बड़ी ज्यादा है..
धूप सा तन दीप सी मैं .... महादेवी वर्मा
उड़ रहा नित एक सौरभ-धूम-लेखा में बिखर तन,
खो रहा निज को अथक आलोक-सांसों में पिघल मन
अश्रु से गीला सृजन-पल,
औ' विसर्जन पुलक-उज्ज्वल,
आ रही अविराम मिट मिट
स्वजन ओर समीप सी मैं!
पत्थरों का स्रोत ..ज्योति सिंह
क्या लिखूं
क्या कहूं ?
असमंजस में हूँ ,
सिर्फ मौन होकर
निहार रही
बड़े गौर से
पत्थर के
छोटे -छोटे टुकड़े ,
जो तुमने बिखेर दिये है
मेरे चारो तरफ ,
..
आज बस
कल हमारी छुट्टी है
सादर
अनलॉक का पता नही कितने दिन हो गए
पर लग रहा है लॉकडाऊन के माफिक
भयभीत कर गया लोगों को
कॉलोनी की सड़के सूनी..
बच्चे भी घर के अंदर ही हैं
....
चलिए चलें रचनाओं की ओर
मिर्च अनंत, तीखापन अनंता ..गगन शर्मा
हमारे देश में सबसे तीखी मिर्च असम की भूत जोलोकिया मानी जाती है, जिसे घोस्ट पेप्पर, यू मोरक या लाल नागा भी कहा जाता है ! शायद इसके तीखेपन के कारण ही इसका नाम भूतिया पड़ गया हो ! आम मिर्चों से जिनका ''एसएचयू'' तकरीबन 5000 के आस-पास होता है, इसका तीखापन है, करीब चार सौ गुना ज्यादा होता है। जबकि इस जाति की सबसे शरीफ मिर्च है हमारी शिमले वाली, जिसके नाम में ही सिर्फ मिर्च है, उसका आंकड़ा शून्य ही होता है,
है ना गजब..........!
रेखाएँ ...सुधा सिंह व्याघ्र
रेखाएँ बहुत कुछ कहती हैं...
उदासीनता, निस्संगता का
सुदृढ़ रूप रेखाएँ,
निर्मित होती हैं भिन्नताओं के बीच
दो बहिष्कृतों के बीच
दो सभ्यताओं के बीच
एक मोटी दीवार सी
दो सोच के बीच
अमीर और गरीब के बीच
मदांधता ...विभा रानी श्रीवास्तव
abc: बता दीजिये ना, ये तो जो मुझे कागज़ पर लिखा मिला मैंने उसे टाइप कर दिया। हाँ कुछ जगह मेरे कारण स्पेलिंग मिस्टेक जरूर हुआ है..
xyz: शुरू में ही विधाओं को विद्याओं किया हुआ है... पूरा शाम तक बताते हैं..
abc : इंतज़ार करेंगे: ये तो मेरी गलती है
xyz : गलती कम हड़बड़ी ज्यादा है..
धूप सा तन दीप सी मैं .... महादेवी वर्मा
उड़ रहा नित एक सौरभ-धूम-लेखा में बिखर तन,
खो रहा निज को अथक आलोक-सांसों में पिघल मन
अश्रु से गीला सृजन-पल,
औ' विसर्जन पुलक-उज्ज्वल,
आ रही अविराम मिट मिट
स्वजन ओर समीप सी मैं!
पत्थरों का स्रोत ..ज्योति सिंह
क्या लिखूं
क्या कहूं ?
असमंजस में हूँ ,
सिर्फ मौन होकर
निहार रही
बड़े गौर से
पत्थर के
छोटे -छोटे टुकड़े ,
जो तुमने बिखेर दिये है
मेरे चारो तरफ ,
..
आज बस
कल हमारी छुट्टी है
सादर
सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना
ReplyDeleteउम्दा लिंक्स चयन
बेहतरीन रचनाये ,अच्छी प्रस्तुति ,सभी को बधाई हो ,मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद यशोदा जी ,हार्दिक आभार
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