Sunday, June 14, 2020

385..प्रारम्भ में लौटने की इच्छा से भरी हूं!

सादर अभिवादन
रविवार दिन अच्छा है
लोग चाहकर भी
बाहर नहीं जा रहे हैं
आज की रचनाएँ कुछ यूँ है...

तू देता है तो दिए ही चला जाता है 
बह जाते हैं सारे  द्वंद्व जिसमें 
खो जाते हैं भेद सभी 
गिर जाती हैं दीवारें 
तू बरसता है तो बरसे ही चला जाता है 

प्रमोद ने फेसबुक खोला तो कॉलोनी के अमर की फादर्स डे पर पोस्ट दिखी। उसके पापा के साथ उसकी 4-5 बहुत ही प्यारी तस्वीरे थी। साथ ही में लिखा था, ''पापा, आप दुनिया के सबसे अच्छे पापा हो। मैं आपसे बहुत प्यार करता हूं। मुझे मेरी जिंदगी में यहां तक पहुंचाने में आपका बहुत बड़ा योगदान हैं। मैं आपके लिए कुछ भी कर सकता हूं। आय लव यू पापा...!!''

ये दिल है आज मुअत्तर सनम की खुशबू से ।
बहुत क़रीब से महबूब मेरा गुज़रा है ।।

वो शख़्स फिर न मुहब्बत में डूब जाए कहीं ।
बहार आई है मौसम नया नया सा है ।। 

अंतिम रचना एक बंद ब्लॉग से
मैं उसके रक्त को छूना चाहती हूं
जिसने इतने सुन्दर चित्र बनाये
उस रंगरेज के रंगों में घुलना चाहती हूं
जो कहता है-
कपड़ा चला जायेगा बाबूजी!
पर रंग हमेशा आपके साथ रहेगा
बस आज इतना ही
कल फिर
सादर



4 comments:

  1. तेरा आना किसी महाआकाश के आंगन में उतर जाने सा है
    किसी सागर के दिल में समाने सा है
    तू सुहृद बनकर साथ चलता है
    तेरे साये में ही हर दिल का कमल खिलता है !
    जैसी अनमोल पंक्तियों से सजी रचना के साथ एनी अनमोल रचनाओं से सजा भावपूर्ण अंक आदरणीय दीदी | सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं|

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  2. तेरा आना किसी महाआकाश के आंगन में उतर जाने सा है
    किसी सागर के दिल में समाने सा है
    तू सुहृद बनकर साथ चलता है
    तेरे साये में ही हर दिल का कमल खिलता है !
    जैसी अनमोल पंक्तियों से सजी रचना के साथ एनी अनमोल रचनाओं से सजा भावपूर्ण अंक आदरणीय दीदी | सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं|

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  3. हलचल का यह अंक भी पठनीय रचनाओं से सुसज्जित है, सभी रचनाकारों को बधाई ! मुझे भी इसमें शामिल करने हेतु आभार यशोदा जी !

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  4. पठनीय रचनाएं। मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।

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