सादर नमस्कार
जून महीने का तीसरा सोमवार
गहमा -गहमी रही
पवित्र रिश्ता जो टूट गया
संसार सारा दुखी है
और क्यों न हो
रिश्ता जो टूटा है
दुःख तो होगा ही...
...
चलिए आज की रचनाएँ देखें..
गहमा -गहमी रही
पवित्र रिश्ता जो टूट गया
संसार सारा दुखी है
और क्यों न हो
रिश्ता जो टूटा है
दुःख तो होगा ही...
...
चलिए आज की रचनाएँ देखें..
खड़ी खड़ी मैं देख रही
मीलों लम्बी खामोशी ।
नहीं रही अब इस शहर में
पहले जैसी हलचल सी
खामोशी का अफसाना ,
भीगा आँचल आज धरा का
राग छेड़ती पुरवाई।
महकी महकी सुगंध माटी
संग समेटे ले आई।
टापुर टुपुर साज छेड़ रही
शीतल जल भरी फुहारे।
थिरक उठी बरखा की बूँदे
झूम रहे हैं तरु सारे।
हर अधूरे बने मकान में एक अधूरी कथा की
गूँज होती है
कोई घर यूँ ही नहीं छूट जाता अधूरा
कोई ज़मीन यूँ ही नहीं रह जाती बाँझ
सपनो में रंग भरे
नैना सजल हुये
जितने भी जतन करे।
पहन रहे हैं गहना
हार बिंदी कंगन
फूल खिले मन, अंगना
इससे पहले कि फिर से
तुम्हारा कोई अज़ीज़
तरसता हुआ दो बूँद नमी को
प्यासा दम तोड़ दे
संवेदनाओं की गर्मी को
काँपते हाथों से टटोलता
ठिठुर जाए और
हार जाए जिंदगी की लड़ाई
कि हौसलों की तलवार
खा चुकी थी जंग.
प्रिय बहन जी हार्दिक धन्यवाद आपने पोस्ट को स्थान दिया आभार
ReplyDeleteइतने प्रशंसकों और परिवार को अशांत करके अनंत को निकले सुशांत को क्या शांति मिल गयी होगी ? अश्रुपूरित नमन | अवसाद ने एक होनहार सितारा निगल लिया | आज की सभी रचनाएँ उत्तम | सभी को सस्नेह शुभकामनाएं|
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा जी ,रेणु जी बिल्कुल सही कह रही है ,अपनो के बारे में पहले सोचना चाहिए ,उम्र भर का गम परिवार वाले को दे गया खुद आजाद होकर ,नियति के आगे मनुष्य लाचार है
ReplyDeleteअति सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसभी स्वस्थ व तनावमुक्त रहें
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