गज पुराण चालू हो गया है
निर्दयता अपने चरम पर है
हमारे भारत में देव पशुओं को
नहीं मारा जाता...मसलन
गज, वानर, और गौ
ये सब पूजनीय है
कलि-काल का अंत
लगता है समीप ही है
सादर अभिवादन....
आज की रचनाएँ...
आर्तनाद ...विश्वमोहन कुमार
दो जोड़ी कातर निगाहें लाचारी के धुँधलेपन में घुलती जा रही थी। सिसकियों का संवाद चलता रहा। दिन भर माँ को अगोरे रही। भाई
कब का घर से निकल चुका था। भौजाई का मुँह दिन भर फूला रहा।
अरूणाभा ...कुसुम कोठारी
अलसाई सी भोर जागती
पाखी का कलरव फूटा।
अरुणाचल में लाली चमकी
रक्तिम रस मटका टूटा।
ज्येष्ठ धूप में बंजारन ...अभिलाषा चौहान
दूर-दूर तक दिखे मरुस्थल
आग उगलती धरती है
दिखे नहीं है ठंड़ी छाया
जो संताप को हरती है
तपिश सूर्य से दग्ध हुई वो
ज्येष्ठ धूप में बंजारन
रेतीले धोरों में भटके
जल की बूँदों के कारण।।
विश्व साईकिल दिवस पर विशेष ...रेणुबाला
आज कोरोना संकट के बीच पर्यावरण की शुद्धता के बीच लोगों को साईकिल खूब याद आई | कोरोना संकट से विचलित साधन हीन श्रमिक वर्ग पैदल के साथ बहुधा साईकिल पर सवार हो सैकड़ों मीलों का सफ़र साईकिल से तय करते देखे गये तो अपनों की फ़िक्र में भागते लोग अपनों के लिए साईकिल के जरिये अपनों तक पंहुचते देखे गये | सेहत के बेहतर बनाने के लिए लॉकबंदी में कमरों के बीच लोगों ने साईकिल चलाकर अपनी सेहत खूब संवारी| इसी तरह आने वाले समय में भी साईकिल के स्वर्ण युग की वापसी हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी |
विचारों से ..ओंकार जी
विचारों,
घुस आओ अन्दर,
मैं कब से इंतज़ार में हूँ,
इतनी फ़ुर्सत में हूँ
कि तुम्हारा स्वागत कर सकूँ,
देख सकूँ कि तुममें से
किसे बोया जा सकता है,
सींचा जा सकता है,
बनाया जा सकता है
एक हरा-भरा दरख़्त.
यथार्थ की कविता ...डॉ. नवीन दवे मनावत
छिपाया जाता है
सूरज को!
दबाई जाती है चांद
की रोशनी को
तब वहां केवल
जुगनुओं की रोशनी में
मंत्रणाएं होती है
तब उस समय
शब्द बताता..
यथार्थ की कविता।
...
आज बस
कल शायद
फिर
निर्दयता अपने चरम पर है
हमारे भारत में देव पशुओं को
नहीं मारा जाता...मसलन
गज, वानर, और गौ
ये सब पूजनीय है
कलि-काल का अंत
लगता है समीप ही है
सादर अभिवादन....
आज की रचनाएँ...
आर्तनाद ...विश्वमोहन कुमार
दो जोड़ी कातर निगाहें लाचारी के धुँधलेपन में घुलती जा रही थी। सिसकियों का संवाद चलता रहा। दिन भर माँ को अगोरे रही। भाई
कब का घर से निकल चुका था। भौजाई का मुँह दिन भर फूला रहा।
अरूणाभा ...कुसुम कोठारी
अलसाई सी भोर जागती
पाखी का कलरव फूटा।
अरुणाचल में लाली चमकी
रक्तिम रस मटका टूटा।
ज्येष्ठ धूप में बंजारन ...अभिलाषा चौहान
दूर-दूर तक दिखे मरुस्थल
आग उगलती धरती है
दिखे नहीं है ठंड़ी छाया
जो संताप को हरती है
तपिश सूर्य से दग्ध हुई वो
ज्येष्ठ धूप में बंजारन
रेतीले धोरों में भटके
जल की बूँदों के कारण।।
विश्व साईकिल दिवस पर विशेष ...रेणुबाला
आज कोरोना संकट के बीच पर्यावरण की शुद्धता के बीच लोगों को साईकिल खूब याद आई | कोरोना संकट से विचलित साधन हीन श्रमिक वर्ग पैदल के साथ बहुधा साईकिल पर सवार हो सैकड़ों मीलों का सफ़र साईकिल से तय करते देखे गये तो अपनों की फ़िक्र में भागते लोग अपनों के लिए साईकिल के जरिये अपनों तक पंहुचते देखे गये | सेहत के बेहतर बनाने के लिए लॉकबंदी में कमरों के बीच लोगों ने साईकिल चलाकर अपनी सेहत खूब संवारी| इसी तरह आने वाले समय में भी साईकिल के स्वर्ण युग की वापसी हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी |
विचारों से ..ओंकार जी
विचारों,
घुस आओ अन्दर,
मैं कब से इंतज़ार में हूँ,
इतनी फ़ुर्सत में हूँ
कि तुम्हारा स्वागत कर सकूँ,
देख सकूँ कि तुममें से
किसे बोया जा सकता है,
सींचा जा सकता है,
बनाया जा सकता है
एक हरा-भरा दरख़्त.
यथार्थ की कविता ...डॉ. नवीन दवे मनावत
छिपाया जाता है
सूरज को!
दबाई जाती है चांद
की रोशनी को
तब वहां केवल
जुगनुओं की रोशनी में
मंत्रणाएं होती है
तब उस समय
शब्द बताता..
यथार्थ की कविता।
...
आज बस
कल शायद
फिर
व्वाहहहह..
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाएं
शुभकामनाएं..
सादर..
निर्दयी भक्षकों के नाश के लिए आज परशुराम की प्रतीक्षा है जिनके परशु से निकला यह हस्तिनी वध-स्थल है। बहुत सुंदर प्रस्तुति। आभार ।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति! मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय दीदी। सभी रचनाकारों को शुभकामनायें और बधाई🙏🙏
ReplyDeleteजीवन रक्षा कैसे होगी
ReplyDeleteप्रश्न सामने विकट खड़ा
धरती का उर भी प्यासा है
जल संकट यम रूप बड़ा
बूँद-बूँद से सिंचित जीवन
मिलें कहीं तो हो पारण
रेतीले धोरों में भटके
जल की बूँदों के कारण।।
मार्मिक पंक्तियाँ!!!!!
सहृदय आभार सखी 🌹🌹
Deleteसुंदर मनभावन रचना प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीया 🙏🌹
ReplyDeleteहथिनी को चाहे किसी भी कारण प्रताड़ित किया गया हो वह क्षम्य नहीं है, दरिंदगी की सजा मिलनी ही चाहिए ! पर दूसरी खबर पर भी ध्यान देना जरुरी है, जहां एक नन्हें मासूम ने खतरा मोल ले नाजुक से शावक की जान बचाई ! आज हजारों लोग अपनी जान की परवाह ना कर दूसरों की जिंदगियां बचाने के लिए कमर कसे हुए हैं ! इस विकराल संकट काल में भी किसी शहर, गांव, हाट, बाजार में किसी पशु या पक्षी को बिना दाना-पानी भूखे-प्यासे मरते देखा-सुना नहीं गया है, सकारात्मकता का स्वागत होना चाहिए
ReplyDeleteसुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल करने के लिए शुक्रिया.
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