आज व्यथित है मन
पता नहीं क्यों
होने भी दीजिए
कल तक सही हो जाएगा
बाद अभिवादन के चलते हैं
पता नहीं क्यों
होने भी दीजिए
कल तक सही हो जाएगा
बाद अभिवादन के चलते हैं
रचनाओं की ओर...
नन्ही चिड़िया !
फुदक-फुदककर
आगे -पीछे
उड़-उड़कर
सिखा रही है अपने नन्हे शिशु को उड़ना
चिड़िया तो चिड़िया
उसे खानी है बेटे की कमाई ?
रचाना है बेटों का ब्याह ?
( मतलब तुम समझो मूरख)
जैसे कड़ी से कड़ी जुड़ी है इस तरह
कि कोई जोड़ नजर नहीं आता
‘तू’ जुड़ा है ’मैं’ से उसे भेद जरा नहीं भाता
‘मैं’ को यह ज्ञात नहीं
निज संसार बसाता है
नीला समुन्दर नीला आसमान
धरा बहुरंगी इंद्र धनुष सामान
आशा उपजती उसे निहारने की
समस्त रंग जीवन में उतारने की |
यह जीवन भी है क्षणभंगुर
जाने कब साँसें थम जाएं
शरीर अग्नि की भेट चढ़े
...
आज रचनाएं कम है
पता नहीं क्यूं
फिर भा काफी हैं
सादर
...
आज रचनाएं कम है
पता नहीं क्यूं
फिर भा काफी हैं
सादर
अपना ख्याल रखें
ReplyDeleteरचनाएँ कम है चयन में दम है
सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई यशोदा जी, आभार!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना संकलन
ReplyDeleteधन्यवाद मेरी रचना को इस अंक में स्थान देने के लिए |
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