Thursday, June 18, 2020

389 ..‘तू’ जुड़ा है ’मैं’ से उसे भेद जरा नहीं भाता

आज व्यथित है मन
पता नहीं क्यों
होने भी दीजिए
कल तक सही हो जाएगा
बाद अभिवादन के चलते हैं
रचनाओं की ओर...

प्रीति अग्रवाल
नन्ही चिड़िया !
फुदक-फुदककर
आगे -पीछे
उड़-उड़कर
सिखा रही है अपने नन्हे शिशु को उड़ना
चिड़िया तो चिड़िया
उसे खानी है बेटे की कमाई ?
रचाना है बेटों का ब्याह ?
( मतलब तुम समझो मूरख)

जैसे कड़ी से कड़ी जुड़ी है इस तरह 
कि कोई जोड़ नजर नहीं आता 
‘तू’ जुड़ा है ’मैं’ से उसे भेद जरा नहीं भाता 
‘मैं’ को यह ज्ञात नहीं 
 निज संसार बसाता है


नीला समुन्दर नीला आसमान
धरा बहुरंगी इंद्र धनुष सामान
आशा उपजती उसे निहारने की
समस्त रंग जीवन में उतारने की |
 यह जीवन भी  है क्षणभंगुर
जाने कब साँसें थम जाएं
शरीर अग्नि की भेट चढ़े
...
आज रचनाएं कम है
पता नहीं क्यूं
फिर भा काफी हैं
सादर

4 comments:

  1. अपना ख्याल रखें
    रचनाएँ कम है चयन में दम है

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  2. सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई यशोदा जी, आभार!

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  3. बहुत सुंदर रचना संकलन

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  4. धन्यवाद मेरी रचना को इस अंक में स्थान देने के लिए |

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