सादर अभिवादन
कल हम त्रस्त थे
नेटवर्क के मारे
थे पल रहे..आभार सखी को
सम्हाल ली गद्दी हमारी..
शिकायत थी कि
ब्लॉग में डिब्बों की
पैदाइश हो गई है...
हमने देखा और सही किया
अब आज देखें कि कैसी है
नयी सेटिंग....
शिव वन्दना ....अभिलाषा चोहान ‘सुज्ञ’
अक्षर अच्युत चंद्र शिरोमणि
विष्णुवल्लभ योगी दिगंबर
त्रिलोकेश श्रीकंठ शूल्पाणि
अष्टमूर्ति शंभू शशिशेखर
ॐ प्रणव उदघोष अभ्यंतर
ऊर्जित परम करे उत्साहित
अनादि अनंत अभेद शाश्वत
कण-कण में वह सदा प्रवाहित
उलूक का टैगलाईन ..खुदा के वास्ते
‘बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी है
हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा।’
सशर्त बटवारा ...मेरी सहेली
''व्वाहहहह...शिल्पा व्वाहहहह,
मान गए तुमको!
बंटवारे की अपनी अनोखी शर्त से,
और सूझबूझ से तुमने अपना बुढ़ापा सुधार लिया!''
अरमानों के तारे ...पुरुषोत्तम सिन्हा
टाँक डाले, अरमानों के तारे,
आसमां पे, सारे!
पहुँच से दूर रखकर, सो रहा वो बेखबर,
मान लूँ कैसे, वो है रहबर!
असीम इक्षाएं जगी हैं,
मन में कितनी आशाएं, दबी हैं,
एहसास, जागे हैं सारे!
जाग उठो ....नीलांश
संगीत बनाओ सुरमई सुमधुर
जाओ पंछियों की चहक के ओर
किसी बस्ती में गर मुफलिसी है
तुम जाना उस सड़क की ओर
ईमान से जीना,ईमान से मरना
न जाना तड़क भड़क की ओर
ये मन शरद का फूल है ! ..जोया
तेरी बात - बात सोचूँ मैं और यूँ ही दिल भरा करूँ,
तेरी चाहतों की याद को, मैं उदासियों से हरा करूँ।
कभी धूल है, कभी शूल है, कभी भारी कोई भूल है
के ये मन शरद का फूल है, इसे कैसे मैं हरा करूँ।
आज बस
कल फिर
सादर
कल हम त्रस्त थे
नेटवर्क के मारे
थे पल रहे..आभार सखी को
सम्हाल ली गद्दी हमारी..
शिकायत थी कि
ब्लॉग में डिब्बों की
पैदाइश हो गई है...
हमने देखा और सही किया
अब आज देखें कि कैसी है
नयी सेटिंग....
शिव वन्दना ....अभिलाषा चोहान ‘सुज्ञ’
अक्षर अच्युत चंद्र शिरोमणि
विष्णुवल्लभ योगी दिगंबर
त्रिलोकेश श्रीकंठ शूल्पाणि
अष्टमूर्ति शंभू शशिशेखर
ॐ प्रणव उदघोष अभ्यंतर
ऊर्जित परम करे उत्साहित
अनादि अनंत अभेद शाश्वत
कण-कण में वह सदा प्रवाहित
उलूक का टैगलाईन ..खुदा के वास्ते
‘बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी है
हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा।’
सशर्त बटवारा ...मेरी सहेली
''व्वाहहहह...शिल्पा व्वाहहहह,
मान गए तुमको!
बंटवारे की अपनी अनोखी शर्त से,
और सूझबूझ से तुमने अपना बुढ़ापा सुधार लिया!''
अरमानों के तारे ...पुरुषोत्तम सिन्हा
टाँक डाले, अरमानों के तारे,
आसमां पे, सारे!
पहुँच से दूर रखकर, सो रहा वो बेखबर,
मान लूँ कैसे, वो है रहबर!
असीम इक्षाएं जगी हैं,
मन में कितनी आशाएं, दबी हैं,
एहसास, जागे हैं सारे!
जाग उठो ....नीलांश
संगीत बनाओ सुरमई सुमधुर
जाओ पंछियों की चहक के ओर
किसी बस्ती में गर मुफलिसी है
तुम जाना उस सड़क की ओर
ईमान से जीना,ईमान से मरना
न जाना तड़क भड़क की ओर
ये मन शरद का फूल है ! ..जोया
तेरी बात - बात सोचूँ मैं और यूँ ही दिल भरा करूँ,
तेरी चाहतों की याद को, मैं उदासियों से हरा करूँ।
कभी धूल है, कभी शूल है, कभी भारी कोई भूल है
के ये मन शरद का फूल है, इसे कैसे मैं हरा करूँ।
आज बस
कल फिर
सादर
हमेशा की तरह शालीन व जीवन्त प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति👌👌👌 सभी रचनाकारों को सस्नेह शुभकामनायें🙏🙏
ReplyDeleteव्वाहहहहह...
ReplyDeleteबेहतरीन...
सादर..
वाह बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🙏🌹 मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीया 🙏🌹
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति!!!
ReplyDeleteयशोदा जी
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम
रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
आभाआपका चयन बहुत बैलेंस सा होता है। .हर तरह का स्वाद लिए। .. सभी लिंक्स खुद को आकर्षित करते हैं
महादेव के चरणों में रचनापुष्प रखने के लिए ...अभिलाषा चोहान ‘सुज्ञ’ JI को नमन
मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार