Saturday, June 13, 2020

384..महसूस कर बेवकूफ स्वतंत्र तो तू अभी कुछ साल पहले ही से तो हो रहा था

हमने कल कहा था कि
कल छुट्टी है
पर “
दिय का इरादा कुछ
नेक ही है...
चार दोस्तों ने मिलकर 

रायपुर से 30 किलोमीटर दूर
एक गाँव में दस एकड़ जमीन
खरीद ली है...और
सब्जी बागीचा का विकास कर रहे है
फलदार वृक्ष लगाए जा रहे है
गाय-भैंसे खरीदी जा चुकी है
दूध-दही-घी का उत्पादन शुरु
जैविक खाद का निर्माण शुरू
भविष्य की तैय्यारी..
ये तो थी राम-कहानी....
अब चलें रचनाओं की तरफ...


परिप्रेक्ष्य ..पुरुषोत्तम सिन्हा

शायद, बदल से जाते हैं परिदृश्य!
या शायद, परिप्रेक्ष्य!
ये रंग, ये कैनवास, ये ब्रश, ये कूचियाँ, 
निर्जीव से हैं ये सारे,
पर, ये मन!
उकेरता है जो, अपने ही सपन,
फिर, बेवशी में, सच से, फेरता है नयन?
उड़ेलता है रंग,
और बेख्याल हो, उकेरता है वो,
इक तस्वीर!


पुरानी दुनिया ...ओंकार जी

सड़कें सूनी हैं,
पक्षी ख़ामोश हैं,
हवाएँ लौट रही हैं
बंद दरवाज़ों से टकराकर.

सूरज उगता है,
मारा-मारा फिरता है
सुबह से शाम तक,
फिर डूब जाता है.


सच्ची खुशी ....सुधा सिंह व्याघ्र

"टैक्सी.... टैक्सी.... एयरपोर्ट जाना है। कितने पैसे लगेंगे।" 
"600 रुपये साब ! इतना ज्यादा...!" 
क्या करें साब, पेट्रोल में तो जैसे आग लगी हुई है।" 
"अच्छा ठीक है।," कहते हुए समीर टैक्सी में बैठ गया। 
"जल्दी चलाओ भाई। देर हो रही है। फ्लाइट आने में एक घंटा ही बचा है। अगर इतना धीरे चलाओगे तो हम एक घंटे में कैसे पहुंचेंगे।" 
"क्या करें साब! मुंबई की सड़कों का हाल तो आपको पता ही है.. और ऊपर से ये ट्रैफिक ! उफऽऽ.. जान ही निकाल देती हैं ।


"स्त्रियाँ" ...मीना भारद्वाज

अनपढ़ हो या पढ़ी-लिखी
बड़ी भोली होती हैं स्त्रियाँ
गुड्डे-गुड़ियों के  खेल के साथ 
बन जाती हैं माँ और दादी जैसी ...
सीख लेती हैं संवारना 
अपना घर-संसार 
और...स्वेच्छा से सारा दिन 
बनी फिरती हैं चक्करघिन्नी ...



25 त्रिवेणियाँ ..... गुलज़ार

पौ फूटी है और किरणों से काँच बजे हैं
घर जाने का वक्‍़त हुआ है,पाँच बजे हैं

सारी शब घड़ियाल ने चौकीदारी की है!


सोशियल मीडिया (लघु कथा) ...सुजाता प्रिय

कल उन बदमाश छोकरों ने ही मोबाइल में उसके बेटे का फोटो दिखा कर कहा देखो काकी धरमा भाई का पता चल गया।हमलोग उसका फोटो व्हाट्स-एप फेसबुक में डालकर सभी जनों से अपील किए थे कि यह व्यक्ति अगर किसी को दिखे  तो हमें खबर करें।किसी का मैसेज आया है कि इस चेहरे का एक व्यक्ति कलकत्ता के एक अस्पताल में इलाजरत है ।


स्वतंत्र है उलूक अब

नेता
घर बैठ
चुनावी रैलियाँ
बन्द सारे
दिमागों में
बो रहा था

‘उलूक’
गुलामी
सुनी सुनाई बात है
लगभग
सत्तर साल की

महसूस कर
बेवकूफ

स्वतंत्र तो
तू अभी
कुछ साल
पहले ही से
हो रहा था।


9 comments:

  1. विविधतापूर्ण प्रस्तुति । पढकर आनन्द आ गया।

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  2. सुंदर प्रस्तुति।

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  3. बेहतरीन प्रस्तुति दी।

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  4. बहुत बहुत आभार यशोदा जी सुन्दर संकलन में रचना साझा करने हेतु ।

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  5. सुंदर अंक !! सुशील जी की रचना यहाँ से खुल नहीं पा रही।

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  6. चयन करने में उस्ताद हैं
    गुलज़ार की त्रिवेणी गुलजार किये हुए है

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  7. बढ़िया अंक. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार

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  8. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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