Thursday, February 13, 2020

265..अपनी दिखती नहीं सामने वाले की छू रहे होते हैं

सादर अभिवादन
आज तेरह फरवरी
कल पाश्चात्य प्रेम सप्ताह का अँत
आज हग डे है
अब बस भी कर
चल रचनाओं की तरफ चल...

झूलती डाली, उड़ते-चहकते विहग,
जैसे, प्रसंग कोई छिड़ा हो,
गहन सी, कोई बात हो,
या, विहग, बिन-बात ही भिड़ा हो,
उलझ कर, साथ में,
फुर्र-फुर्र, वो कहीं उड़ा हो!


कभी सोचा है तुमने
 युद्ध क्या है..?
 युद्ध कहाँ है..?
 क्या है ?
 दो देशों के बीच नहीं,
 वहाँ युद्ध नहीं है..!
 वहाँ  अहंकार है!


डूबते तिनका दिखा,
मन आस है।
है अजब माया रचे,
भ्रम पास है।
आग में झुलसे फँसे।
है जान भी।
आज दलदल में फँसे,
है प्राण भी।।


सार्वजनिक उद्यान
ढलती दुपहरी
गुनगुनी धूप
बसंती बयार
नर्म घास पर
चित लेटा मैं
निहारता
नीला आकाश
आधा चाँद
फीका चाँद ...


अजब माहौल
की गजब कहानी
सुनने सुनाने वाले
अपनी अपनी
कहानियों को
अपने अपने
कंधों में खुद ही
ढो रहे होते हैं

‘उलूक’
समझ में
क्यों नहीं घुस
पाती है एक
छोटी सी बात
कभी भी तेरे
खाली दिमाग में
....
बस आज इतना ही
फिर मिलते हैं
सादर

4 comments:

  1. जितना थकेंगे...
    ज़ियादा टिकेंगे..
    शुभ संध्या..
    सादर..

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  2. सुभद्रा संध्या। खूबसूरत प्रस्तुति दीदीजी सादर नमन।

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  3. शुभभ संध्या, शुभम संवादम....विनम्र अभिवादन ।

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा जी।

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