Sunday, February 16, 2020

268...देखते ही देखते माह फरवरी भी बीत चली

सादर अभिवादन
देखते ही देखते
माह फरवरी भी बीत चली
कौन रोक सका है समय को
न रुका है और न ही रुकेगा

चलिए चलते हैं रचनाओं की ओर ....

यह रात नहीं है,
रात तो बीत चुकी है,
बस सूरज नहीं निकला है,
वह लड़ रहा होगा,
निकलने की कोशिश कर रहा होगा.


कैसा ये अवधान,
वही है धरा,
बदला, बस रूप जरा,
छाँव कहीं, कहीं बस धूप भरा,
क्षण-क्षण, हैं अ-समान,
बिन व्यवधान!

बिंदी माथे पर सजा ,कर सोलह श्रृंगार ।
पिया तुम्हारी राह अब ,अखियां रही निहार ।।

बिस्तर पर की सिलवटें,बोलें पूरी बात ।
साजन हैं परदेश में ,मिला बड़ा आघात ।


कई सारी वीडियो एक के बाद एक
पर उसकी कविताओं से थोड़ी कम
और मनमोहक अदाओं से ज्यादा जब-जब
चमक उठती हैं तुम्हारी शोख़ी भरी निगाहें
उस वक्त तलाशता रहता है तुम्हारा यह स्टुपिड
ख़ुद को उन चमक भरी तुम्हारी निगाहों में
टटोलते हुए तुम्हारे बचपन में तुमको लगाए गए


है सियासत का फ़लसफ़ा इतना ।
आग घर में लगाओ सो जाओ ।।

इतनी जल्दी भी क्या मुहब्बत में ।
तुम ज़रा सब्र खाओ सो जाओ ।।

स्याह रातों में बेसबब मुझको ।
आइना मत दिखाओ सो जाओ ।।
...
आज बस इतना ही
कल फिर मिलते हैं
सादर


4 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति. मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया.

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  2. आज भगवान श्रीराम की अर्धांगिनी माता सीता के प्राकट्य की तिथि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अष्टमी है । ये घर के भण्डारण की अधिष्ठात्री है । जनक जी जब सूखे की वजह से यज्ञ कर रहे थे तो सोने के घड़े से उनका हल टकराया था। धरती में सोना, जल, कृषि उत्पाद तथा अन्यान्य पदार्थ होते हैं । अतः धरती के धन-धान्य की देवी सीता जी ही हैं ।
    यद्यपि, अपने प्रियजनों के लिए उन्होंने मौन रह कर क्या नहीं त्याग किया ..

    सुंदर रचनाओं से सजा मंच, सभी को प्रणाम।




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