सादर अभिवादन..
बकौल विभा दीदी
आज खाली जेब डे है
खैर...हने दीजिए हमें क्या..
चलिए रचनाओँ की ओर..
बकौल विभा दीदी
आज खाली जेब डे है
खैर...हने दीजिए हमें क्या..
चलिए रचनाओँ की ओर..
बेवजह......
बरसती बूँदो का
ढूँढ रही थी मै सिरा;
अचानक
तेरा ख्याल आ गिरा ,
छाया घन सा घनघोर
जिसका कोई
ओर न छोर,
हृदयांगन
भीग गया जगह जगह,
और वही
बेवजह।।
खिलखिलाहट से परे
रुआंसे व्यक्ति की शायद बन जाती है पहचान,
उदासियों में जब ओस की बूंदों से
छलक जाते हों आंसू
तो एक ऊँगली पर लेकर उनको
ये कहना, कितना उन्मत लगता है ना
कि इस बूंद की कीमत तुम क्या जानो, लड़की!
मेघाच्छादन
बिखरता सैलाब~
गीला क्षितिज!
डूबती नाव~
उफनाती सी धार
तैरते लोग!
प्रेम प्रतीक है माना जाता
मन को मेरे अति हर्षाता
काँटों में भी रहे शादाब
हैं सखी साजन ?......
..................न री गुलाब ।
मैं लिख दूँगा
अपने को सम्पूर्ण
संसाधनों से परिपूर्ण
व्यक्तित्व होने के
बावजूद तुमसे कभी
ना मिल पाने वाली
प्रेम करने को चाह।
....
अब बस
कल फिर
सादर
अब बस
कल फिर
सादर
सभी रचनाएँ बेहतरीन। मेरी कविता को स्थान देने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteलाजवाब मुखरित मौन सभी रचनाएं बेहद उम्दा
ReplyDeleteमेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद यशोदा जी !
लज़ाबाब।
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