सादर अभिवादन
17 फरवरी
अंगरेजी की ग्रेगरियन कैलेंडर में
साल के 48वाँ दिन बाटे ।
साल के खतम होखे में
अबहिन 318 दिन बचल बाटें
चलिए चलें रचनाओं की ओर
कश्मीर की वादी से एक प्रेम पत्र आया है. हम सबके नाम. क्या आपने वह प्रेम पत्र पढ़ा? मैं भी कहाँ पढ़ पायी. कबसे रखा था बंद ही. भागते दौड़ते ही देखो न वैलेंटाइन डे भी निकल गया. आज जाकर खत खोला.
ससम्मान सत्कार का ग़लीचा बिछा,
बुज़ुर्ग बरगद ने दिया आसन प्रभाव का,
विनम्र भाव से रखा तर्क अपना,
बिखर रही क्यों शक्ति तुम्हारी,
मानव को क्यों प्रकृति से अलगाव हुआ।
दुनिया ने कितना समझाया
कौन है अपना कौन पराया
फिर भी दिल की चोट छुपा कर
हमने आपका दिल बहलाया..।
जंगल की कंदराओं से निकल तुम ।
सभ्यताओं के सोपान इतने चढ़े तुम ।
क्यूँ हो अभी भी दानव इतने तुम !
अत्याचार ये..इतने वीभत्स वार क्यूँ ?
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
साँसें धोखा दे जाती हैं,
साँसों पर विश्वास न करना।
सपने होते हैं हरजाई,
सपनों से कुछ आस न करना।।
....
बस आज इतना ही
कल फिर
सादर
कल फिर
सादर
सपने पर गुरुजी की रचना पढ़ रहा था..
ReplyDeleteतभी लेविस कैरोल की इस रचना का स्मरण हो आया, जिसका एपीजे अब्दुल कलाम साहब ने अपनी पुस्तक अग्नि की खोज में उल्लेख किया है-
कौशल, महत्वाकाँक्षा
सपने अपने
कसौटी पर कसो।
जब तक कि दुर्बलता बने शक्ति,
कि अंधियारा उठे जगमग,
कि अन्याय हरे नीति ...।
पटल पर आज की विशेष प्रस्तुति और रचनाओं के मध्य मेरी लघुकथा को स्थान के लिए हृदय से आपका आभार
यशोदा दी।
बेहतरीन लिंक्स एवम प्रस्तुति
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति शानदार लिंक।
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को बधाई।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय दीदी. मेरी रचना को स्थान देने के लिये सहृदय आभार
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