सादर अभिवादन..
बीत गई फरवरी भी
अब करिए मार्च का इंतजार
दौड़ा चला आ रहा है
.....
चलिए नई-पुरानी कुछ रचनाओं पर एक नज़र..
बीत गई फरवरी भी
अब करिए मार्च का इंतजार
दौड़ा चला आ रहा है
.....
चलिए नई-पुरानी कुछ रचनाओं पर एक नज़र..
नाराज हो जाती हो,
फिर भी मान जाती हो,
कितनी अच्छी हो तुम,
जो हर पल मुझे चाहती हो।
ज़नाब मेंहदी अब्बास रिज़वी ....इक हाँ के इंतिज़ार में
मंज़िल मिलेगी मुझ को भरोसा रहा सदा,
नारा - ए - इंक़लाब लगाएंगे रात दिन।
इक हाँ के इंतिज़ार में सदियां गुज़र गईं,
मिलते जवाब नाज़ उठाएंगे रात दिन।
गुरुमिन्दर सिंह ...अख़बार और पत्रिका
क्या लिख छोड़ू इन पन्नों पर,
कौन पढ़ेगा क्यूँ पढ़ेगा,
इन पन्नों को,
कोई युग पुरुष तो हूँ नहीं,
न जन्मा हूँ,
कुलीनों की बस्ती में,
फिर क्योंकर कोई आकर्षित होगा,
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा ....हे शिव
अर्पित है, दुविधा मेरी,
समर्पित, मन की शंका मेरी,
बस खुलवा दे, मेरे भ्रम की गठरी,
उलझन, सुलझ जाए थोड़ी,
जोड़ लूँ, मैं ये अँजुरी!
श्रीकान्त सौरभ ..अधूरी चाहत
"तू जा और वो धरमशाला का कमरा है न। वहीं बैठकर बतिया ले अपने राजा बाबू से। तब तक मैं इधर रहकर चौकीदारी करती हूं।" उसकी सलाह पर लड़की शर्माते हुए उधर चली दी। साथ में लड़का भी हो लिया।
...
आज बस
कल फिर
सादर...
शुक्रिया आपका जी,
ReplyDeleteधन्यवाद, मैडम जी!
ReplyDeleteसुंदर।
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