नमस्कार
अर्थ क्या है नमस्कार का....
नमस्कार के पीछे छुपा वैज्ञानिक तर्क- जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है, ताकि सामने वाले व्यक्ति को हम लंबे समय तक याद रख सकें।
याद रखिएगा आप भी....
चलिए रचनाएं देखें....
श्वेता सिन्हा ......मधुमास
शीत की निष्ठुरता से उदास,
पल-पल सिहरती
आखिरी साँस लेती
पीली पात
मधुमास की प्रतीक्षा में,
बसंती हवा की पहली
पगलाई छुअन से तृप्त
शाख़ से लचककर
सहजता से
विलग हो जाती है।
पुरुषोत्तम सिन्हा ... चुप हो क्यूँ?
जीवन, जिन्दगी में खो रहा कहीं,
मानव, आदमी में सो रहा कहीं,
फर्क, भेड़िये और इन्सान में अब है कहाँ?
कहीं, श्मसान में गुम है ये जहां,
बिलखती माँ, लुट चुकी है बेटियाँ,
हैरान हूँ, अब तक हैवान जिन्दा हैं यहाँ!
अट्टहास करते हैं वो!
तुम चुप हो क्यूँ?
अनुराधा चौहान ....खिलखिलाई धरा
कलियाँ देखी खिलती धीरे ,
धरती है महकी महकी।
रिमझिम फुहारें झिलमिल करें ,
बूँदे हैं थिरकी थिरकी।
झूम रहा है तरुवर उपवन ,
झूम रहा है ये मन भी।
पल्लव पल-पल छेड़ रहे धुन,
धरती झूमे जीवन भी।।
सुबोध सिन्हा ...हनुमान चालीसा
भले वह लड्डू भक्तगण प्रसादस्वरूप स्वयं सपरिवार या मुहल्ले में बाँट कर खाते हैं और कुछ अंश तोंदिले पंडित के हिस्से आता है।
अब हमें हमारी भावी पीढ़ी को ये हनुमान-चालीसा बकवाने के पहले उसका अर्थ उन्हें समझाना चाहिए और बुरा ना माने तो खुद भी जानना चाहिए।
उसके कुछ अंश विचारणीय अवश्य हैं। इसका विश्लेषण अवश्य करना चाहिए कि इसमें सच्चाई कितनी है। है भी या नहीं । या कहीं तुलसीदास जैसे प्रकांड विद्वान की कोरी कल्पना भर है, किसी कॉमिक्स के किसी काल्पनिक पात्र "स्पाइडर मैन" , "सुपर मैन" या फिर "शक्तिमान" की तरह।
पंकज उपाध्याय ....सिगरेट के धुये में
सिगरेट के धुये में,
कुछ शक्ले दिखती है,
मुझसे बाते करती हुयी,
कुछ चुप चाप.....
और सिगरेट जलती जाती है...
जैसे वक्त जल रहा हो,
आशा बिष्ट ...कांच के टुकड़े
सुनो
मेरे पास कुछ
कांच के टुकड़े हैं
पर उनमें
प्रतिबिंब नहीं दिखता
पर कभी
फीका महसूस हो
तो उन्हें धूप में
रंग देती हूं
.....
आज तो हम हैं
कल आएंगी देवी जी
-दिग्विजय
अर्थ क्या है नमस्कार का....
नमस्कार के पीछे छुपा वैज्ञानिक तर्क- जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है, ताकि सामने वाले व्यक्ति को हम लंबे समय तक याद रख सकें।
याद रखिएगा आप भी....
चलिए रचनाएं देखें....
श्वेता सिन्हा ......मधुमास
शीत की निष्ठुरता से उदास,
पल-पल सिहरती
आखिरी साँस लेती
पीली पात
मधुमास की प्रतीक्षा में,
बसंती हवा की पहली
पगलाई छुअन से तृप्त
शाख़ से लचककर
सहजता से
विलग हो जाती है।
पुरुषोत्तम सिन्हा ... चुप हो क्यूँ?
जीवन, जिन्दगी में खो रहा कहीं,
मानव, आदमी में सो रहा कहीं,
फर्क, भेड़िये और इन्सान में अब है कहाँ?
कहीं, श्मसान में गुम है ये जहां,
बिलखती माँ, लुट चुकी है बेटियाँ,
हैरान हूँ, अब तक हैवान जिन्दा हैं यहाँ!
अट्टहास करते हैं वो!
तुम चुप हो क्यूँ?
अनुराधा चौहान ....खिलखिलाई धरा
कलियाँ देखी खिलती धीरे ,
धरती है महकी महकी।
रिमझिम फुहारें झिलमिल करें ,
बूँदे हैं थिरकी थिरकी।
झूम रहा है तरुवर उपवन ,
झूम रहा है ये मन भी।
पल्लव पल-पल छेड़ रहे धुन,
धरती झूमे जीवन भी।।
सुबोध सिन्हा ...हनुमान चालीसा
भले वह लड्डू भक्तगण प्रसादस्वरूप स्वयं सपरिवार या मुहल्ले में बाँट कर खाते हैं और कुछ अंश तोंदिले पंडित के हिस्से आता है।
अब हमें हमारी भावी पीढ़ी को ये हनुमान-चालीसा बकवाने के पहले उसका अर्थ उन्हें समझाना चाहिए और बुरा ना माने तो खुद भी जानना चाहिए।
उसके कुछ अंश विचारणीय अवश्य हैं। इसका विश्लेषण अवश्य करना चाहिए कि इसमें सच्चाई कितनी है। है भी या नहीं । या कहीं तुलसीदास जैसे प्रकांड विद्वान की कोरी कल्पना भर है, किसी कॉमिक्स के किसी काल्पनिक पात्र "स्पाइडर मैन" , "सुपर मैन" या फिर "शक्तिमान" की तरह।
पंकज उपाध्याय ....सिगरेट के धुये में
सिगरेट के धुये में,
कुछ शक्ले दिखती है,
मुझसे बाते करती हुयी,
कुछ चुप चाप.....
और सिगरेट जलती जाती है...
जैसे वक्त जल रहा हो,
आशा बिष्ट ...कांच के टुकड़े
सुनो
मेरे पास कुछ
कांच के टुकड़े हैं
पर उनमें
प्रतिबिंब नहीं दिखता
पर कभी
फीका महसूस हो
तो उन्हें धूप में
रंग देती हूं
.....
आज तो हम हैं
कल आएंगी देवी जी
-दिग्विजय
बहुत अच्छी सांध्य मुखरित मौन प्रस्तुति
ReplyDeleteBahut bahut dhnywad ...Kavita ko sthan dene ke liye
ReplyDeleteBahut Umada.
ReplyDeleteशुभ संध्या ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को पटल पर स्थान दिया उसके लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय
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