Tuesday, January 23, 2018

है आती सदा तेरी


तन्हाई में बिखरी खुशबू-ए-हिना तेरी है।
वीरान खामोशियों से आती सदा तेरी है।।


अश्क के कतरों से भरता गया दामन मेरा।
फिर भी खुशियों की माँग रहे दुआ तेरी है।।


अच्छा बहाना बनाया हमसे दूर जाने का।
टूट गये हम यूँ ही या काँच सी वफा तेरी है।।


सुकून बेचकर ग़म खरीद लाये है तुमसे।
लगाया था बाज़ार इश्क का ख़ता तेरी है।।


वक्त की शाख से टूट रहे है यादों के पत्ते।
मौसम ख़िज़ाँ नहीं बेरूखी की हवा तेरी है।।

©श्वेता

3 comments:

  1. लाजवाब श्वेता बहुत ही शानदार।
    खि़जा पर इल्जाम बस यूंही है
    मुकद्दर अपने को न देखा हमने।
    वाह वाह गजल।

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