Saturday, January 27, 2018

अश्रु नीर....दीपा जोशी

यह नीर नही
चिर स्नेह निधि
निकले लेन
प्रिय की सुधि

संचित उर सागर
निस्पंद भए
संग श्वास समीर
नयनों में सजे

युग युग से
जोहें प्रिय पथ को
भए अधीर
खोजन निकले

छलके छल-छल
खनक-खन मोती बन
गए घुल रज-कण
एक पल में
-दीपा जोशी

3 comments: