बसंत राग
धरा गगन छाया
सुमन खिलाने को
ऋतुराज भी
कोकिल सा कूकता
मधुबन में आया।
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सरसों झूमा
बासंती मौसम में
खेतों में लहराया
धरा रिझाने
तरूवल्ली सजाने
बसंतराज आया।
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बौराया मन
कोयलिया पंचम
राग छेड़ती डोले
ओढ़ कर चूनर
बासंती रंग संग
फूल पात पे डोले।
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प्रीत के गीत
गुनगुनाता आया
पीताम्बर डाल के
बसंत छाया
कोयलिया कुहकी
पलाश दहकाया।
-डॉ. सरस्वती माथुर
बहुत सुन्दर कविता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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