मिट्टी से सोच
आकाश की कल्पना
वक़्त से लेकर
हवा, धूप और बरसात
उग आया है
शब्दों का अंकुर
कागज़ की धरा पर
समय के एक छोटे से
कालखंड को जीता
ज़मीन के छोटे से टुकड़े पर
जगता और पनपता
फिर भी जुड़ा हुआ है
अतीत और आगत से
मिट्टी की
व्यापकता से।
-डॉ. प्रभा मुजुमदार
बहुत खूब
ReplyDeleteवाह बहुत खूब!!
ReplyDeleteजुडा है मिट्टी की व्यापकता से।
बेहतरीन।
वाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब...
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरूवार 1 फरवरी 2018 को प्रकाशनार्थ 930 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
आदरणीय प्रभा दी , आपकी रचना अर्थों के नए आयाम प्रस्तुत करती है । कई बार पढ़ा हर बार एक अलग अर्थ प्रतिध्वनित हुआ । बेजोड़ लेखन।
ReplyDeleteसादर
बहुत लाजवाब...
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत लाजवाब...
ReplyDeleteवाह!!!
simpiy beautiful
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २५ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह!!बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रभा जी
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