तन्हाई में बिखरी खुशबू-ए-हिना तेरी है।
वीरान खामोशियों से आती सदा तेरी है।।
अश्क के कतरों से भरता गया दामन मेरा।
फिर भी खुशियों की माँग रहे दुआ तेरी है।।
अच्छा बहाना बनाया हमसे दूर जाने का।
टूट गये हम यूँ ही या काँच सी वफा तेरी है।।
सुकून बेचकर ग़म खरीद लाये है तुमसे।
लगाया था बाज़ार इश्क का ख़ता तेरी है।।
वक्त की शाख से टूट रहे है यादों के पत्ते।
मौसम ख़िज़ाँ नहीं बेरूखी की हवा तेरी है।।
वीरान खामोशियों से आती सदा तेरी है।।
अश्क के कतरों से भरता गया दामन मेरा।
फिर भी खुशियों की माँग रहे दुआ तेरी है।।
अच्छा बहाना बनाया हमसे दूर जाने का।
टूट गये हम यूँ ही या काँच सी वफा तेरी है।।
सुकून बेचकर ग़म खरीद लाये है तुमसे।
लगाया था बाज़ार इश्क का ख़ता तेरी है।।
वक्त की शाख से टूट रहे है यादों के पत्ते।
मौसम ख़िज़ाँ नहीं बेरूखी की हवा तेरी है।।
©श्वेता
लाजवाब श्वेता बहुत ही शानदार।
ReplyDeleteखि़जा पर इल्जाम बस यूंही है
मुकद्दर अपने को न देखा हमने।
वाह वाह गजल।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह
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