पल पल लांछित होती नारी
मूक निहारे दुनियाँ सारी
नारी को ही जागना होगा
तभी मिटेगी ये व्यभिचारी !
बिखरे भाव समेटने होगे
रक्ताभ नयन पुनि करने होगे
ज्वाला सी धधको तुम जग में
तजो विवशता और लाचारी !
नारी का मतलब है ना ....री
सर झुका काहे तू हारी
असत्य का प्रतिरोध करो तुम
दोयम दर्जा तू तो ना ...री !
घर समाज की धुरी तू है
काहे की लघुता लाचारी
उठो झाड़ लो धूल समय की
निरीह नहीँ तू है बलशाली !
डॉ. इन्दिरा गुप्ता ✍
सुन्दर
ReplyDeleteनारी पर लिखी यह रचना बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteऔर प्रेरणा देने वाली है
नारी को अपनी शक्ति पहचाननी होगी ... जागृत होना होगा स्वयं को मानना होगा ...
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