जल चढ़ाया
तो सूर्य ने लौटाए
घने बादल ।
तटों के पास
नौकाएं तो हैं,किन्तु
पाँव कहाँ हैं?
ज़मीन पर
बच्चों ने लिखा'घर'
रहे बेघर ।
रहता मौन
तो ऐ झरने तुझे
देखता कौन?
चिड़िया उड़ी
किन्तु मैं पींजरे में
वहीं का वहीं !
ओ रे कैक्टस
बहुत चुभ लिया
अब तो बस
आपका नाम
फिर उसके बाद
पूर्ण विराम!
- कुँअर बेचैन
सौजन्यः नीतू रजनीश ठाकुर
गज़ब...वाह्ह्ह...सुंदर हायकु👌
ReplyDeleteबहुत मनमोहक रचना
ReplyDeleteवाह सुंदर ।
ReplyDeleteभावों की स्पष्ट अभिव्यक्ति।
बहुत सुंदर।