सादर अभिनवादन
जनवरी को तो शान्त निकलने देना था
मगर नहीं, खुजली मिटती नहीं न थी
मथते रहेंगे मक्खन निकलते तक
सो मिटा ली..
चलिए रचनाओं की ओर
तस्वीरों के रंग में उलझे बिना,
ध्वनि,गंध,अनुभूति के आधार पर
साधारण आँखों से दृष्टिगोचर
दुनिया महसूसना
ज्यादा सुखद एहसास हो
शायद...।
तो फिर ..
देर किस
बात की
भला ,
बस .. आओ ना ,
आ भी जाओ ना ..
जानाँ ...
जो समक्ष है, क्या वही है सत्य?
या इक दूसरा भी रुख है, नजर के परे!
जो नजर ना आए, उसका क्या?
जो, महसूस हो, उसका क्या?
इश्क़ की अदालत में हूँ,
आज मेरे मोहब्बत की सुनवाई होगी,
गुनाह-ए-इश्क़ की सजा मिलेगी
या आज मेरी रिहाई होगी,
मुक़दमा हो गया तो क्या मुझे
आज भी भरोसा है उस पर,
जरा पता तो करो यारों,
वो ये सब देखने जरूर आई होगी।
गणतंत्र दिवस पर जो कुछ भी हुआ वो
बेहद दुखद, कष्टकारक व अपमानजनक था !
आम आदमी अवाक और तिलमिला कर रह गया !
खासकर लाल किले की अस्मिता पर
कुछ सिरफिरों के हुड़दंग को देख !
इसके साथ ही यह भी तय हो गया कि
आदतानुसार कुछ निर्लज्ज लोग शाम को
विभिन्न चैनलों पर आ विष्ठावामन करने लग जाएंगे
रेशमी कोशों के मध्य चलता रहता है
निःशब्द जीवन का रूपांतरण,
विशाल वृक्ष हों या कोई सूक्ष्म खरपतवार,
हर एक पल में होता है
कहीं न कहीं जीवन का अवतरण -
निःशब्द जीवन का रूपांतरण।
...
आज बस
कल की कल
सादर
ReplyDeleteसुन्दर संकलन व प्रस्तुति, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीया यशोदा जी - - नमन सह।
हार्दिक आभार। ।।।।।।।
ReplyDeleteउव्वाहहहहह
ReplyDeleteबेहतरीन..
सादर..