Saturday, January 9, 2021

595...लहज़ा बता देता है रिश्ते की गहराई

सांध्य प्रस्तुति में 
आप सभी का 
स्नेहिल अभिवादन।
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अपनी सहूलियत से 
कांधा बदलता दर्द
चौंकाता नहीं है आजकल।
किसी मौत पर रोती आँखें 
दूसरे ही पल में 
ठहाकों की महफ़िल!
भीड़ की होड़ में
मुखौटे पर मुखौटा
सच बरगलाने लगा है आजकल।

#श्वेता

एहसास की स्याही... शारदा अरोरा


लहज़ा बता देता है रिश्ते की गहराई 
यूँ ही नहीं संवेदनाएँ मर जाया करती हैं 

सबको तौल रहे हो एक ही तराजू पर 
ये खुमारी भी वक्त के साथ उतर जाया करती है
 

तुम चाहो तो...संध्या आर्य


और तुम 

एहसास 

ख़ुशबू  और 

चाँद से भर जाओ 


ना ‘तुम’ जिस्म 

और ना ‘मैं’जिस्म

हमारा खोना क्या 

और पाना क्या 


सफ़र में सामान अधिक जो था...मुसाफ़िर



मैं ठहरी निगाहों से उसे देखता हूँ,

वो मुझ से कह रहा है, मैं अब जा रहा हूँ।


वो जागते ख़्वाब में तनहा सा भटकता है, 

मैं अपनी नींद में भी साथ उस के जा रहा हूँ।

पल भर का ठिकाना ...शान्तनु सान्याल

नीरवता की उस 
निःशब्द भाषा में नदी खोजती है, 
मुहाने तक पहुँचने का रास्ता, 
विशाल लवणीय समुद्र को छूते ही 
छूट जाते हैं बहुत पीछे, 
गाँव, देवल, घाट की टूटी सीढ़ियां, 
दूर तक किसी से नहीं रहता


मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ ....अकिञ्चन धर्मेन्द्र



सच कहूँ-
अब इतना औपचारिक हो गया है..; 
यह कहना- 
"मैं तुमसे प्रेम करता हूँ..!"
कभी-कभी
एक गहन उदासी से 
भर जाता है-कोरा मन..!
"मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ"-
यह कहने से बेहतर है..; 
मैं तुम्हें प्रेम करता रहूँगा..!








3 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति..
    आभार...
    सादर...

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  2. वास्तविकता को उजागर करती हुई प्रस्तावना मुग्ध करती है, सभी रचनाएं अपने आप में असाधारण हैं मुझे शामिल करने हेतु आभार आदरणीय श्वेता जी।

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  3. व्वाहहहहह
    बेहतरीन अंक
    सादर

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