भारतीय गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या
पर आप सभी को शुभकामनाएँ
हवा ,ये फूल ,ये खुशबू ,यही गुबार रहे
कहीं से लौट के आऊँ तुझी से प्यार रहे
मैं जब भी जन्म लूँ गंगा तुम्हारी गोद रहे
यही तिरंगा ,हिमालय ये हरसिंगार रहे
वैक्सीन का निर्माण हो चुका है, कोरोना पर काफी हद तक नियंत्रण हो चुका है। भारत विश्व के कई देशों को इसकी वैक्सीन भेजने में सक्षम है, यह बात भी हमारे लिए कितने गर्व की है। एक बार फिर राजपथ पर सुंदर झाँकियाँ, बच्चों के द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा सैन्य बलों का प्रदर्शन एक बार फिर यह सिद्ध कर देगा कि आपदा चाहे कितनी भी भीषण क्यों न हो मानवता अपना मार्ग ढूंढ ही लेती है।
आसमान वही है,
चाँद वही है,
सितारे भी वही हैं,
पर बहुत देख लिया तुमने
खिड़की के पीछे से इन्हें.
ईश्वर अर्थात भगवान हमेशा से हैं। वह अनादि हैं, निराकार हैं, सर्वव्यापक हैं, ईश्वर को किसी ने नहीं बनाया है।
सच ये है कि इंसान सोचता हैं कि ईश्वर हैं या नही लेकिन...
ये कभी नहीं सोचता कि मैं इंसान हूं या नही!!
ख़ामोशी की वजह, सिर्फ़
बियाबां को है मालूम,
आईने को कैसे
बताएं, कब
सूख
गए मरुद्यान, अक्स - -
....
बस
कल दिव्या आएगी
सादर
बस
कल दिव्या आएगी
सादर
उम्दा संकलन। मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या को महकाता हुआ मुखरित मौन, सुन्दर प्रस्तुति व संकलन, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीया यशोदा जी - - नमन सह।
ReplyDeleteसुन्दर संकलन.आभार
ReplyDeleteदेशप्रेम तथा सारगर्भित रचनाओं से ओतप्रोत सुन्दर संकलन के लिए आपको बधाई यशोदा दी..गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह..
ReplyDeleteसांध्य दैनिक " मुखरित मौन" के सभी मनीषियों, साहित्यकारों, सुधी पाठकों एवं संयोजकों को गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
ReplyDeleteजय हिन्द ! जय भारत !
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह