सांध्य अंक में आप सभी का
स्नेहिल अभिवादन
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१२५वीं वर्षगांठ है भारत के लाल निडर,निर्भीक सुभाषचंद्र बोस की,
यदि तोरे डाक शुने केऊ आसे तबे
ऐकला चलो रे...वाले जोश की।
यदि तोरे डाक शुने केऊ आसे तबे
ऐकला चलो रे...वाले जोश की।
नमन करता देश कैसे भुला सकता है?
खून और आज़ादी के नारे
कण-कण में गूँज रहे थे तब
आवश्यकता थी प्राण फूँकते रोष की।
अमर ,अटल वह ध्रुव तारा ! ...ज्योति-कलश
खून के बदले आज़ादी देने का जिसका था नारा
मातृभूमि का वीर सिपाही हर इक दिल का है प्यारा
'जय हिन्द' उद्घोष को सुनकर जिसके ,बैरी थर्राया
भारत के अम्बर पर चमका अमर,अटल वह ध्रुव तारा !
पारम्परिक चित्रों से
सुसज्जित काले-काले गोदने ,
या फिर .. दिख जाते हैं कभी-कभार
सारे के सारे जनसमुदाय ही
आपादमस्तक
राम-राम गुदवाए हुए
बजरे पे पनियों का नज़ारा हसीन था
महफ़िल में उसके साथ में होकर भी हम न थे
राजा हो ,कोई रंक या शायर ,अदीब हो
जीवन में किसके साथ खुशी और ग़म न थे
बदला मेरा स्वभाव जमाने को देखकर
बचपन में दांव -पेंच कभी पेचोखम न थे
प्राण जी उठते हैं सहसा एक लंबे -
शीत निद्रा से, गर्म सांसों से
लम्हा लम्हा पिघलती
सी है ज़िन्दगी,
बहुरंगी
मीनपंखों से तैरती हैं हसीं लफ़्ज़ों
की कश्तियाँ, कांच के
दीवारों से टकरा
कर लौट
आती
कुछ तो होगा ऐसा,
जिसके लिए जी-जान लगा के
मेंहदी की तरह रचता गया ..
रचता गया संसार चक्रव्यूह जैसा,
किसके लिए ?
अभिमन्यु के लिए ??
छल और बल की क्षुद्र विभीषिका
डिगा ना पाई जिसकी सत्यनिष्ठा ।
माथे तिलक लगा विदा कर
रण में प्रण जाना मुझको
काट शीश बैरी दुश्मन का
चरणों में तेरे चढ़ाना मुझको ।
टीकाकरण अभियान की प्रसन्नता, बेहाल किसानों की चिंता और मारे गए पक्षियों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए इस वर्ष और आने वाले तमाम वर्षों से आशा रखते हैं कि हम अपने कर्तव्यों का पूरी निष्ठा से पालन करें, देशहित प्रधान रखें और जीव-जंतुओं के प्रति संवेदनशीलता के भाव जागृत कर, उनकी रक्षा हेतु अपने स्वर बुलंद करें.
....
बस
कल फिर
सादर
बहुत अच्छी सांध्य दैनिक मुखरित मौन प्रस्तुति
ReplyDeleteभारत के लाल निडर,निर्भीक सुभाषचंद्र बोस की १२५वीं वर्षगांठ पर सादर श्रद्धासुमन!
बेहतरीन अंंक..
ReplyDelete125 वीं वर्षगाँठ पर सादर नमन..
सादर..
जय हिन्द ! बहुत बढ़िया प्रस्तुति आपकी !
ReplyDeleteआभार ,शुभकामनाएँ 💐💐
देशभक्ति से ओतप्रोत प्रस्तावना के साथ मुखरित मौन का सांध्य अंक अपना अलग प्रभाव छोड़ता हुआ, मुझे जगह देने हेतु असंख्य आभार - - नमन सह।
ReplyDeleteसुंदर संयोजन के लिए बधाई और शामिल करने के लिए हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteनेताजी को स्मरण करते हुए लिखी कविता और इस अंक में आपका कथन भा गए ।
सुंदर अंक, शुभकामनाएं
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