सादर अभिवादन
आज आपका परिचय एक नए ब्लॉग से करा रही हूँ
उम्मीद है आप हौस़लाअफ़जाई करेंगे
आप कवितानुमा आलेख लिख रहे हैं
मैं उनकी एक रचना को
आलेखनुमा कविता बनाकर प्रस्तुत कर रही हूँ
आप श्री संदीप शर्मा, सम्पादक
मासिक पत्रिका प्रकृति-दर्शन के हैं
कुल मिलाकर प्रकृति भी एक कविता ही है
इसमें सुर भी है और ताल भी है
आलेखनुमा कविता बनाकर प्रस्तुत कर रही हूँ
आप श्री संदीप शर्मा, सम्पादक
मासिक पत्रिका प्रकृति-दर्शन के हैं
कुल मिलाकर प्रकृति भी एक कविता ही है
इसमें सुर भी है और ताल भी है
सुबह कभी खेत में
फसल के बीच
क्यारियों में देखता हूँ तो
तुम्हारी बातों के सौंधेपन के साथ
जिंदगी का हरापन भी
नज़र आ ही जाता है...।
सोचता हूँ
मुस्कान और हरेपन में कोई रिश्ता है
देखे तु्म्हें ये चांद इजाज़त नहीं उसे
देखे तु्म्हें ये चांद इजाज़त नहीं उसे
शिक़वे शिकायतों की बातें फ़िज़ूल हैं,
हर रंग मेरे महबूब का मुझे क़ुबूल है।
ख़ता कोई भी तुमसे हो नहीं सकती,
दामन पर तेरे दाग़ ज़माने की भूल है।
रात का सौंदर्य ...
हर रंग मेरे महबूब का मुझे क़ुबूल है।
ख़ता कोई भी तुमसे हो नहीं सकती,
दामन पर तेरे दाग़ ज़माने की भूल है।
रात का सौंदर्य ...
झांझर है झनकी
मन भी बहका
बागों में कैसा
सौरभ महका
चहुं दिशा पसरे
उर्मि भरे घट।।
पत्ता गोभी खाना चाहिए या नहीं?
मन भी बहका
बागों में कैसा
सौरभ महका
चहुं दिशा पसरे
उर्मि भरे घट।।
पत्ता गोभी खाना चाहिए या नहीं?
गुणकारी पत्ता गोभी को लेकर लोगों के मन में जो डर है
उसकी वजह वो कीड़ा है, जो पत्ता गोभी के सेवन से
हमारे शरीर में जा सकता है। इस कीड़े को टेपवर्म (Hook Worm)
उसकी वजह वो कीड़ा है, जो पत्ता गोभी के सेवन से
हमारे शरीर में जा सकता है। इस कीड़े को टेपवर्म (Hook Worm)
या फीताकृमि कहते है, जो सफेद धागे जैसा लंबा होता है।
(पूरा आलेख पढ़िए...सावधानी ही बचाव है)
कांच का संसार ....
कांच का संसार ....
मायावी प्रकाश,
बनावटी समंदर की तल भूमि,
ऊपर उठते नन्हें बुलबुले,
नक़ली प्रवाल भित्ति,
फ़िरोज़ा लहरों मे कहीं,
कुछ ढूंढती सी है
मरने की चाहत होती जाती है ....
बनावटी समंदर की तल भूमि,
ऊपर उठते नन्हें बुलबुले,
नक़ली प्रवाल भित्ति,
फ़िरोज़ा लहरों मे कहीं,
कुछ ढूंढती सी है
मरने की चाहत होती जाती है ....
मुहब्बत क्या हुई जैसे इबादत होती जाती है|
कि सजदे में झुकने की आदत होती जाती है||
चलाओ तीर कितने भी सितम चाहे करो जितने|
जो उल्फत हो गई इक बार तो बस होती जाती है ||
सागर की व्यथा ...
कि सजदे में झुकने की आदत होती जाती है||
चलाओ तीर कितने भी सितम चाहे करो जितने|
जो उल्फत हो गई इक बार तो बस होती जाती है ||
सागर की व्यथा ...
सागर तू आज कैसे है मौन ।
अंतस् भेद की गांठें खोल ।।
अचलता नहीं प्रकृति तेरी ।
चंचलता लहरों की चेरी ।।
कलपता सागर ...
अंतस् भेद की गांठें खोल ।।
अचलता नहीं प्रकृति तेरी ।
चंचलता लहरों की चेरी ।।
कलपता सागर ...
पल-पल विलखती है वो ...
सर पटक-पटक कर तट पर,
शायद कहती है वो....
अपने मन की पीड़ा बार-बार रो रो कर,
लहर नहीं है ये....
है ये अनवरत बहते आँसू के सैलाब,
विवश सा है ये है फिर किन अनुबंधों में बंधकर....
....
बस..
कुछ रचनाएँ अधिक है आज
झेल लीजिएगा
सादर
सर पटक-पटक कर तट पर,
शायद कहती है वो....
अपने मन की पीड़ा बार-बार रो रो कर,
लहर नहीं है ये....
है ये अनवरत बहते आँसू के सैलाब,
विवश सा है ये है फिर किन अनुबंधों में बंधकर....
....
बस..
कुछ रचनाएँ अधिक है आज
झेल लीजिएगा
सादर
उम्दा संकलन। मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।
ReplyDeleteवाह!बहुत सुंदर संकलन ।
ReplyDeleteसुंदर संकलन। सार्थक प्रयास। आज मेरी पोस्ट को भी सम्मिलित किया गया है। सादर आभार।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सूत्रों का संकलन । मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।
ReplyDeleteसार्थक सूत्रों से सजा मनभावन अंक. नये ब्लॉग पर जाकर बहुत अच्छा लगा. संदीप जी का ब्लॉग्गिंग की दुनिया में हार्दिक अभिनंदन है. सभी से अनुरोध है नये ब्लॉग पर जरूर जाएं और सार्थक विषयों के मौलिक चिन्तनपरक लेखों को पढ़ें. सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏
ReplyDeleteसुन्दर संकलन व प्रस्तुति, मुझे जगह देने हेतु असंख्य आभार आदरणीया यशोदा जी - - नमन सह।
ReplyDeleteशानदार लिंक शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत आकर्षक अंक सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को लेने के लिए हृदय तल से आभार।
झेलवाने हेतु हार्दिक आभार
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