नमस्कार
पिछले कुछ दिनों से
देवी जी की तबियत नासाज़ सी है
पूजा - पाठ में ध्यान ज़रा ज्यादा ही है
खैर..जो होगा सही ही ही होगा
समंदर को ढूँढती है
ये नदी जाने क्यूँ,
पानी को पानी की
ये अजीब प्यास है!!
पिछले कुछ दिनों से
देवी जी की तबियत नासाज़ सी है
पूजा - पाठ में ध्यान ज़रा ज्यादा ही है
खैर..जो होगा सही ही ही होगा
समंदर को ढूँढती है
ये नदी जाने क्यूँ,
पानी को पानी की
ये अजीब प्यास है!!
देखिए आज का पिटारा...
श्रद्धांजलि ...पुरुषोत्तम सिन्हा
श्रद्धांजलि ...पुरुषोत्तम सिन्हा
जाते-जाते, संग उन यादों को भी ले जाते,
सारी, कल्पनाओं को ले जाते,
ढूंढेगीं, जो अब तुझको,
यूँ, रह-रह कर,
गए ही क्यों, रख कर इस ओर!
विस्मृतियों के, ये डोर!
प्रेम ...रेवा टिबड़ेवाल
प्रेम ये शब्द
राग की तरह मन के
तारों को झंकृत करता है
ध्यान मग्न योगी
जैसे ईश्वर के दर्शन पा कर
भाव विभोर हो जाता है
वैसा ही है प्रेम
कृतघ्नता की हद ..जिज्ञासा सिंह
और हम इंसान किसकी कितनी रोटी खाई
ये बहुत जल्दी भूल जाते हैं
तुमने हमारे लिए क्या किया ?
कहते हुए बिलकुल नहीं शर्माते है
मेरी भावना ...कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
भोर की लाली लाई
आदित्य आगमन की बधाई ।
रवि लाया एक नई किरण
संजोये जो सपने हो पूरण
पा जायें सच में नवजीवन
ख़ुश्बू के निशां नहीं मिलते ...शान्तनु सान्याल
कंक्रीट के जंगल में, राहतों के आसमां नहीं मिलते,
अनचाहे संधियों में, ज़िन्दगी के निशां नहीं मिलते।
इस शहर में यूँ तो, हर सिम्त हैं, इमारतों के अंबार,
हर शै है मयस्सर, ताहम स्थायी मकां नहीं मिलते।
थकन मेरे हौसलों की .....मेजर (डॉ) शालिनी सिंह
छूते हो मुझे तो
सच में छू पाते हो क्या
मुझे जो मुझमें ही कहीं
छुपी सी रहा करती है
या बहल जाते हो यूं ही
इस ख्याल से कि जानते हो मुझे
कि मुझसे मुहब्बत करते हो तुम
...
अब बस
फिर मिलेंगे
सादर
आभार..
ReplyDeleteसादर..
सुन्दर संकलन व प्रस्तुति, मेरी रचना शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीय दिग्विजय जी - - नमन सह।
ReplyDeleteसुन्दर तथा सरस रचनाओं को पढ़कर आनंद की अनुभूति हुई..श्रमसाध्य कार्य हेतु दिग्विजय जी आपको हार्दिक शुभकामनायें..एवं मेरा हार्दिक अभिवादन..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteविशेषकर डा शालिनी सिंह जी की रचना प्रभावित कर गई।
पता नहीं कौन इस प्रकार किसी को छू पाता है, एक प्यास है शायद आपसी अन्तर्मन की प्रतिस्पर्धा है। यह चलती ही रहेगी जबतक दबे कुचले से अरमान कहीं विचरते रहेंगे।
यह रचना वाकई छू गई मुझे।
शुभकामनाएँ। ।।।।।