Thursday, January 28, 2021

614 ..कोशिश कर घर में पहचान महानों में महान

सादर वन्दे
फिर से दुहराई है दिल्ली
अपने ही इतिहास को
छल को बल से
और..
बल को छल से
हार को जीत में
और..
जीत को हार में
बदल लेना 
मामूली सी बात है
दिल्ली के लिए..
खैर जो है सो...
रचनाओं की ओर चलें..

ये गुड़ जैविक गन्ने से तैयार करते है। इसमें च्यवनप्राश से भी 
ज्यादा खूबियां है। च्यवनप्राश बनाने में जितने प्रकार की 
जड़ी-बूटियां लगती है, इस गुड़ में उससे भी ज्यादा 
जड़ी-बूटियां मिलाई जाती है। इस गुड़ में स्वर्ण भस्म के 
अतिरिक्त 80 प्रकार की जड़ी-बूटियां मिलाई जाती है। 
उनका गुड़ इतना महंगा होने के बावजूद उन्हें ये गुड़ 
बेचने कहीं जाना नहीं पड़ता। उनका पूरा गुड़ 
घर से ही बिक जाता है। इस गुड़ के खरीदार पूरे देश में है। 
अभी 5000 रुपयों किलों वाले गुड़ की मांग पांच सौ किलों प्रति वर्ष है


प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती, 
ये तो यूं ही सूखे पत्तों सा सजीव है, 
सच्चा है, ये नेह में गर्म हवाओं के पीछे 
दीवानों की भांति भागता है, 
ये सूखे पौधों में पानी बन जाता है। 
प्रेम तो प्रेम है ये अंकुरण में भरोसा करता है,


बड़ी विलक्षण प्रकृति रीति है 
काल चक्र गति से निर्धारित ।
संचालन जिससे होता हैं 
सुख दुख का आना जाना ।।

संभव है भागीरथ प्रयास भी 
रख न सके जीवित जिजीविषा ।
और किसी की विषम परिस्थिति 
कर दे असाध्य उसका रह पाना ।।


विलख-विलख कर जब कोई रोता है,
क्यूँ मेरा उर विचलित होता है?
ग़ैरों की मन के संताप में,
क्यूँ मेरा मन विलाप करता है?
औरों के विरह अश्रुपात में,
बरबस यूँ ही क्यूँ....
द्रवित हो जाती हैं ये मेरी आँखें.....

एक खेत
सौ दो सौ
किसान
किसी का हल
किसी का बैल
बबूल के बीज
आम की दुकान
जवानों में बस
वही जवान
जिसके पास
एक से निशान
.....
चलते-चलते एक छोटा सा वीडियो

ज़रूर पसंद आएगा
वड़ा सा बुलबुला
.....
बस अब कुछ नही कहना
सहना ही सहना है
सादर

3 comments:

  1. बेहतरीन अंक आज का..
    आभार..
    सादर..

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  2. मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिव्या दी।

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