सादर अभिवादन
"इलाईची के दानों सा,
मुक़द्दर है अपना...!
महक उतनी ही बिखरती गई ...
जितने पिसते गए"..!!
कभी अपने लिये
कभी अपनों के लिये...!
.....
अब रचनाएँ
मन मेरा ....मन के पाखी
मुक़द्दर है अपना...!
महक उतनी ही बिखरती गई ...
जितने पिसते गए"..!!
कभी अपने लिये
कभी अपनों के लिये...!
.....
अब रचनाएँ
मन मेरा ....मन के पाखी
मन मेरा औघड़ मतवाला
पी प्रेम भरा हाला प्याला
मन मगन गीत गाये जोगी
चितचोर मेरा मुरलीवाला
मंदिर , मस्जिद न गुरुद्वारा
गिरिजा ,जग घूम लिया सारा
मन मदिर पिपासा तृप्त हुई
रस प्रीत में भीगा मन आला
ज़िंदगी की चाय !!! ....सदा

उबाल देना
सारे रंजो-ग़म
अनबन की गाँठ वाली अदरक को,
कूट-पीटकर डाल देना
जिसका तीखा सा स्वाद भी
बड़ा भला लगेगा,
तुम सुनो तो मैं सुनाऊँ ....'परचेत'

मैं इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?
इक गजल लिखी है मैंने तुमपर,
तुम सुनो तो मैं सुनाऊँ।
हो क़दरदान तुम बहुत,
गुल़रुखों के नगमा-ए-साज के,
तारों भरी रात,
नयनोँ मे बरसात,
धुन कौन सी बजाऊँ?
सिफारिश ....राग देवरन

कुछ और नहीं तो खाब्बों में आ जाया करो ll
ख्यालों की गुलाबी घटाओं में रंग जाओ ऐसे l
संदेशों में मचल रहा हो कोई नादान समंदर जैसे ll
....
आज बस
कल शायद फिर
सादर
बहुत ही सुंदर लिंक्स के बीच अपनी रचना पाकर हर्षित हूँ अनुजा ... अनंत शुभकामनाओं सहित .. स्नेहिल आभार
ReplyDeleteयशोदा जी, मैंने देखा कि जब ब्लॉग से समबन्धित अधिकतर सृजनकारी जनमानस जब सिर्फ सोशल मीडिया तक ही मुखातिब होकर रह गया है,(उनमे से मैं भी एक हूँ) आप और आपही के जैसे कुछ साहित्य-प्रेमी अभी भी नि:स्वार्थ यह सराहनीय कार्य कर रहे हैं । आप और उन सभी गणमान्य महानुभावों को मेरा तहे दिल से शुक्रिया और आभार🙏
ReplyDeleteशुभ संध्या भाई जी..
Deleteपढ़ने में आनन्द आता है
पसंदीदा रचनाएँ पढ़वाने में
आनंद द्विगुणित हो जाता है..
आभार..
अनुजा
यशोदा..