Monday, January 4, 2021

590 ..फ़लसफ़ा मोहब्बत का समझ न आया हमको

सादर वन्दे
आज का अंक हमारे जिम्मे
मिला है जिम्मा
तो चलिए जीम लिया जाए
मैं तो जीम ही रही हूँ
आप भी चखिए...

उधार का ज्ञान बहुत है ...अमृता तन्मय



हर अगले को धक्का लगा-लगा कर गिनती है ....
ये हाल है कि छोटे-बड़े राजा-महाराजा मुझे
अपनी दरबार की सुन्दरतम शोभा बनाना चाहते हैं
मेरे छींकने से ही बिखरे हुए मोती जैसे ज्ञान को भी
अपने , उसके , सबके सिर-माथे पर सजाना चाहतें हैं .....


पुस्तक समीक्षा ..किताबों की दुनिया - 222


मरहम लगाने आया था ज़ख़्मों पे वो मेरे
ज़ुल्मों-सितम का साथ में लश्कर लिये हुए

चेहरा किसी का जिस्म किसी का लगा लिया
आसाँ नहीं रही कोई पहचान इन दिनों


जगी उमंगे हैं ..सधु चन्द्र



धुली-धुली नई सुबह से हाथ मिला लो।
पिछली वाली काली-काली रात भुला दो।
जगी उमंगे हैं फिर से... उल्लासों से उन्हें सजा दो ।
चूर-चूर जिससे तन-मन था वो आघात भुला दो।
कलुष झरें किसलय अनुरागी कन्ठ लगा लो।


अन्ततः कोलाहल का अंत ...शान्तनु सान्याल

सभी कुछ है वृथा
तुलसी फूल चंदन,
सभी रंग फीके,
सभी लोग थे
एक सरीखे, केवल सत्य था मणिकर्णिका
आकाश,मेरे सीने से लिपटने का अर्थ
केवल प्रेम ही हो ज़रूरी नहीं,


प्यार भरे दो बोल कहो। .... किशोर कुमार कौशल



तरस रही है जाने कब से,
प्यार भरे दो बोल कहो।
तुम सचमुच कितनी सुंदर हो,
बस इतना मुँह खोल कहो।।
दिन भर खटती,लगी काम में अपनी सुध-बुध खोई सी।
थक कर चूर हुई फिर भी कुछ करती जागी-सोई सी।





फ़लसफ़ा  
मोहब्बत का
समझ न आया हमको।
रात के आग़ोश  में  
संग चाँदनी के  
ख़ूब रोया दिल,
सुबह की पलकों पे
शबनमी क़तरे
गवाही देते। 
...
बस
सादर


5 comments:

  1. जीमनवार चालू रहे...
    बेहतरीन..
    आभार...
    सादर..

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  2. सुन्दर संकलन व प्रस्तुति के साथ मुग्ध करता हुआ मुखरित मौन - - मुझे जगह देने हेतु असंख्य आभार आदरणीया दिव्या जी - - नमन सह।

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  3. अभी तो दाँत मांजने जा रहे हैं

    उम्दा कार्य

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  4. रसना तृप्त हो रही है अत्यंत सुस्वादु व्यंजनों से । अति सुन्दर संकलन हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  5. वाह!
    उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन।मन रसाबोर हो गया।
    मेरी अदना सी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।
    सादर।

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