Sunday, January 17, 2021

603 ..अब के तो छा जाना, गलती मत दोहराना, मलहम आने वाला है

सादर वन्दे
परम्परा सी चल पड़ी है 
नाम बदलने की, 
फैजाबाद अयोध्या हुआ
इलाहाबाद 
प्रयाग राज हो गया..
अभी-अभी  सुना गया कि
माऊण्ट एवरेस्ट का नाम बदला जाए
और राधानाथ सिकदर किया जाए
क्या माऊण्ट एवरेस्ट
उत्तराखण्ड या हिमांचल में है?
इसी तारतम्य में  
एक सुझाव मेरी ओर से
दिल्ली का नाम भी 
बदल कर
खिसियानी बिल्ली 
रख दिया जाए 

चलिए रचनाए देखेंं


जिसे लोग बरगद समझते रहे, 
वो बहुत ही बौना निकला,
दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, 
छू के देखा तो खिलौना निकला, 



जाड़ों की गुनगुनी धूप 
कितनी ममता-भरी है,
जब खड़ा होता हूँ,
तो हाथ रख देती है सिर पर,
सहलाती है गालों को,
जब लेटता हूँ,
तो थपकाती है पीठ,



एक युवा पुरुष को 
अलग अलग उम्र की स्त्रियां
अलग अलग स्वरूप में देखेंगी..
नन्ही बच्ची उसे पिता या भाई सा जानेगी..
युवा होगी तो झिझकेगी सकुचायेगी
उसमें सखा या मित्र खोजेगी..




ख़्वाहिशों की नुमू कब ठहरतीं है
आइनों को बगावतें सिखा रहें बहुत

सदाएँ मेरी फ़लक से टकराती रही
मश्क कर अब निस्बतें बढा रहें बहुत




नतमस्तक 
हो गया था 
साथ में
कुछ दुखी भी हो गया था 
कहीं भी
किसी भी खेत में
नहीं उग पाया था 
बहुत झल्लाया था 

इस बार 
चांस हाथ से नहीं जाने दूंगा 
चाहे धरती पलट जाये 
मौका भुना ही लूंगा

फिर से
क्योंकी लग रहा है कुछ होने वाला है 
सुगबुगाहट सी दिख रही है साफ 
पिछली बार के कलाकारों में
बस इस बार

सुना है
जल्दी ही इस बार वो
रामदेव हो जाने वाला है 
....
अब बस
पूरा उपयोग हो गया छुट्टी का
सादर


7 comments:

  1. आभार..
    ध्यान भटकने न पाए
    सादर..

    ReplyDelete
  2. मां ऊंट अइरेस्ट हो गवा :)
    आभार दिव्या जी।

    ReplyDelete
  3. यथावत सुन्दर प्रस्तुति व संकलन, सभी रचनाएं असाधारण हैं, मुझे जगह देने हेतु असंख्य आभार आदरणीया दिव्या जी - - नमन सह।

    ReplyDelete
  4. सुन्दर प्रस्तुति.आभार

    ReplyDelete
  5. सुंदर प्रस्तुति दिव्या जी। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार। सभी की रचनाएं बहुत सुंदर है।
    सादर।

    ReplyDelete
  6. बेहतरीन प्रस्तुति।

    ReplyDelete