Thursday, January 21, 2021

607 ..कुछ होश गंवाने के चर्चे, कुछ होश में फिर आ जाने के

सादर वन्दे
आखिर बिना किसी हंगामें के
शपथग्रहण हो ही गया
दोनों ताक रहे हैं अमेरिका की ओर
कौन दोनों
एक प्रश्न चिन्ह....

चाँद
चुपके से
खिड़की के रास्ते
कमरे में
रोज आता है
लड़की
अपने करीब आता देख
मुस्कुराती है
देखती है देर तक
छू लेती है
मन ही मन उसे

चिड़िया से ..ओंकार जी
क्यों चीं-चीं कर रही हो,
कौन है जो सुनेगा तुम्हें,
किसे फ़ुर्सत है इतनी,
सुनना भी चाहे,
तो इस भीषण कोलाहल में
किसके कानों तक पहुँच पाएगी
तुम्हारी कमज़ोर सी आवाज़?


कुछ होश गंवाने के चर्चे, कुछ होश में फिर आ जाने के, 
ये दोनों आलम कुछ भी नहीं, टुकड़े हैं मेरे अफ़साने के.. 
कुछ हैरत के आसार से हैं, कुछ दिल सा ठहरा रहता है, 
वहशत से गुजरते जाते हैं, अंदाज़ तेरे दीवाने के..

चले आयेंगे हम छुपकर जहाँ की उन निगाहों से 
जिन्होंने कल कहा था राह में काँटे बिछा देना 

बहुत दिन हो गए पकड़ी नहीं रेशम सी वो उँगली 
मेरी जुल्फों में धीरे से वही उँगली फिरा देना 


शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं 
बहुत -ही प्रवाही, 
मंत्रमुग्ध सीढ़ियोंसे ले जाते हैं 
पाताल में, कुछ अंतरंग माया, 
कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, 
ग्लानि ढके रहते हैं 
धुंध के इंद्रजाल में, 
....
आज के लिए बस
सादर

 

8 comments:

  1. बेहतरीन अंक..
    आभार..
    सादर...

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  2. व्वाहहह..
    शानदार अंक..
    आभार..
    सादर..

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  3. अमेरिका की ओर ताकने वाले कहीं दो दमदार पड़ोसी तो नहीं, सुन्दर संकलन और प्रस्तुति, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीया दिव्या जी - - नमन सह।

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  4. बहुत सुन्दर और रोचक कृतियों को एक मंच पर पढ़ने का अवसर देने के लिए असंख्य धन्यवाद, प्रिय दिव्या जी..मेरी रचना को प्रकाशित करने के लिए हृदय से अभिनंदन करती हूँ.सादर शुभकामनायें..

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  5. सुन्दर संकलन.मेरी रचना को शामिल करने हेतु आभार.

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  6. एक ही जगह लिंकों को सहेजना एक अनुपम प्रयास है | जखीरा को शामिल करने के लिए धन्यवाद |

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  7. सुन्दर संकलन, शुभकामनाएं

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  8. सुंदर लिंक, शानदार प्रस्तुति।
    बहुत बहुत बधाई ।

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