Tuesday, January 26, 2021

612...गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ...

सादर वन्दे 
एक बहुत बड़ी 
बहुआयमित
एक ऐसी किताब
जिसमे लेखन अभी तक जारी है
जिसमें हजारों पृष्ठ रोज जुड़ते है
आप उसका पठन-पाठन और लेखन 
प्रतिदिन करते हैं...बूझिए तो सही

सैनिक...धन्य कोख ...श्वेता सिन्हा

सियासी दाँव-पेंचों से तटस्थ,
सरहदों के बीच खड़े अडिग,
सिपाही,नायक,हवलदार,
सूबेदार,लैफ्टिनेंट,मेजर,
कर्नल नाम वाले
अनेक शब्दों के लिए
 एक शब्द...।


हमारे कर्म ही होते हैं द्रोपदी…
और हमें अपने हर शब्द को बोलने से पहले तोलना बहुत ज़रूरी होता है…अन्यथा उसके दुष्परिणाम सिर्फ़ स्वयं को ही नहीं… अपने पूरे परिवेश को दुखी करते रहते हैं। संसार में केवल मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है…जिसका “विष” उसके “दाँतों” में नहीं, “शब्दों” में है…

द्रोपदी को यह सुनाकर हमें श्रीकृष्‍ण ने वो सीख दे दी जो आए दिन हम गाल बजाते हुए ना तो याद रख पाते हैं और ना ही कोशिश करते हैं। नतीजतन घटनाएं, दुर्घटनाओं में बदल जाती हैं और मामूली सा वाद-विवाद रक्‍तरंजित सामाजिक क्‍लेश में…।


स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले से ध्वजारोहण किया जाता है।
जबकि गणतंत्र दिवस के दिन राजपथ पर झंडा फहराया जाता है।

कुछ अलग से जीने की हसरत लिए बैठा हूँ, 
ख़ाली हाथों में एक बूंद मसर्रत लिए बैठा हूँ,
अब मुड़ के देखें तो किसे, हदे नज़र है अंधेरा,
सीने में कहीं उजालों के जीनत लिए बैठा हूँ,


प्रथम बार जब मान वो पाई
गर्व सहित मुसुकाये थे
जिन गीतों में मान मिला था
वो भी वही सिखाये थे
फिर भी छोड़ चली चुपके से
दर्द से अति सकुचाये थे
काश वो हमसे कह कर जाती
लौ न गणतंत्र की बुझाने पाए
ये शहीदों की इक निशानी है

लाख ज़ुल्म-ओ-सितम किए जाएं
अम्न की आरती सजानी है


जागो!हे ! हिंद वासियों, ...नया सवेरा
कुछ लोग
चंद सिक्के फ़ेककर
फ़ुसला रहे हैं ।
अवनी की रत्न-राशि लूटते
पृष्ठ को पुष्ट करते
प्रजातंत्र में राजतंत्र का
भोग लगा रहे हैं।
....
बस..
कल फिर
सादर

8 comments:

  1. प्रिय दिव्या अग्रवाल जी,
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएंं 🙏
    देशभक्ति से ओतप्रोत सुंदर रचनाओंं का संकलन-संयोजन किया है आपने, जो प्रशंसनीय है।

    मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
    स्नेह सहित,
    डॉ. वर्षा सिंह

    ReplyDelete
  2. आपने पूछा है आज एक प्रश्न...
    प्रयास कर रही हूं, उत्तर देने का

    एक बहुत बड़ी, बहुआयमित,एक ऐसी किताब जिसमे लेखन अभी तक जारी है, जिसमें हजारों पृष्ठ रोज जुड़ते है.... मुझे लग रहा है कि आपका संकेत हमारे देश भारत से ही है। भारत एक किताब की तरह है जिसमें प्रगैतिहासिक काल से वैदिक काल, फिर महाकाव्य काल ....मध्यकाल ...और अब आधुनिक भारत में इस इक्कीसवीं शताब्दी का समय... नित्य निरंतर नए पृष्ठ जुड़ते जा रहे हैं... जिन्हें हम भारतीय पढ़-लिख रहे हैं।
    भारत ही वह शाश्वत बहुआयामित किताब है जिसके लेखन में पीढ़ियों का योगदान है।

    क्या मैं सही हूं दिव्या जी ?
    जिज्ञासु- डॉ. वर्षा सिंह

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया...
      आधुनिक बहुआयामी किताब है
      वो है ब्लॉग जगत है
      हजारों पृष्ठ रोज जुड़ते हैं
      विश्वव्यापी किताब है..
      सर्वश्रेष्ठ और सुरक्षित...
      मैं लगभग 2000 ब्लॉग फालो की हूँ..
      जिसमें से आधे दस वर्ष से बंद हो गए हैं पर
      रचनाएँ सुरक्षित हैं..
      वेद,उपनिषद तो सतयुगीन है..
      दिव्या के पास अनोखी भाषा में लिखित पुस्तक की साफ्ट कापी है, किसी पुस्तकालय से लेकर आई है.. वही सभी को आश्चर्यचकित करते रहती है..

      सादर..

      Delete
    2. अरे वाह.... Amazing

      Thanks for information Dear Yashoda ji.

      Delete
    3. बहुत खूब कहा डा. वर्षा जी..क‍ि भारत एक किताब की तरह है जिसमें प्रगैतिहासिक काल से वैदिक काल, फिर महाकाव्य काल ....मध्यकाल ...और अब आधुनिक भारत में इस इक्कीसवीं शताब्दी का समय... नित्य निरंतर नए पृष्ठ जुड़ते जा रहे हैं... वाह शाश्वत और कल्पना ...अच्छा संयोग

      Delete
  3. गणतंत्र दिवस की असंख्य शुभकामनाएं, सुन्दर प्रस्तुति व संकलन, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीया दिव्या जी - - नमन सह।

    ReplyDelete
  4. इस दिवस की गरिमा बनी रहनी चाहिए

    ReplyDelete
  5. मेरी ब्लॉगपोस्ट को अपने इस खूबसूरत कलेक्शन में शाम‍िल करने के ल‍िए धन्यवाद द‍िव्या जी

    ReplyDelete