Tuesday, January 5, 2021

591 ..फिर फटेंगे ज्वालामुखी फैलेगा लावा भी कहीं बैठा रह

सादर अभिवादन
21 का पाँचवा दिन
बीत रहा
बिना किसी 
हल्ले-गुल्ले के
एक अजीब सी खुशी है
मन में...
आगे देखते हैं
आगे देखते हैं नहीं
आगे ही देखा जाए..
पीछे का भूल जाएँ...
अब चलिए रचनाओं की ओर....



गुफाओं के समंदर में
डूबकर आज अन्दर मैं 

धरा पर शीश ज्यों रक्खा 
नींद का आ गया झोंका 

बजे घड़ियाल घण्टे यूँ 
मैं उनसे जा तनिक मिल लूँ 





अंधकार के गर्भ में ही छुपा होता है
जीवन का उत्स, चाहे जितनी
गहरी हो मायावी रात्रि,
कुहासा चीर कर
निकल ही
आते
हैं, हर हाल में आलोक पथ के यात्री।





मेरी सलवार पर पड़ी वो खून की छींटे मानो 
मुझे बतला रही थी,
कुछ भी पहले जैसा रहा नहीं।
एहसास मुझे करा रही थी। 
अंदर ही अंदर घबरा रही थी।




फौजियां दियां जिंदगियां दे बारे च 
असां जितणा जाणदेतिसते जादा जाणने दी 
तांह्ग असां जो रैंह्दी है। 
रिटैर फौजी भगत राम मंडोत्रा होरां 
फौजा दियां अपणियां यादां 
हिंदिया च लिखा दे थे। 
असां तिन्हां गैं अर्जी लाई भई 
अपणिया बोलिया च लिखा। 
तिन्हां स्हाड़ी अर्जी मन्नी लई।  



‘उलूक’
अभी बहुत कुछ
सिखायेगी तुझे जिंदगी

इसी तरह बैठा रह
शाख पर किसी टूटी
श्मशान के सूखे पेड़ की 

शरम करना
छोड़ दे अभी भी
देख और मौज ले नंगई के
और कह
अट्टहास के साथ

नंगा एक
नंगों के साथ मिलकर
कितनी शान से
हमाम लूट कर बेमिसाल बैठा है ।
..
अब बस
देखें कल कौन आता है
सब अपना मर्जी से आते हैं
सादर


7 comments:

  1. शानदार प्रस्तुति
    सादर..

    ReplyDelete
  2. हमेशा की तरह मुग्ध करता हुआ मुखरित मौन - - सभी रचनाएँ अद्वितीय हैं, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीया यशोदा जी - - नमन सह।

    ReplyDelete
  3. बहुत शानदार प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  4. आदरणीय दीदी, नमस्कार! शानदार लिंक्स की शानदार प्रस्तुति..नई नई रचनाओं से परिचय कराने के लिए आपका हृदय से अभिनंदन करती हूँ.मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहेदिल से आपका आभार..

    ReplyDelete