सादर अभिवादन
मकर संक्रान्ति
सूर्य उपासना
तिल-गुड़
पतंग -डोर
हल्दी -कुमकुम
कुल मिलाकर मौसम परिवर्तन की कहानी
सबसे पहले एक गीत..
चली चली रे पतंग
मेरी चली रे
चली चली रे पतंग
मेरी चली रे
अब चलिए रचनाएँ देखें..
सूरज की पहली किरण
चुपके से घुसती है
खिड़की के रास्ते कमरे में,
देखती है, सोई हुई है वह,
मासूमियत छाई है उसके चेहरे पर.
कोयल अपनी भाषा बोलती है,
इसलिये आज़ाद रहती हैं
किंतु तोता दूसरे कि भाषा बोलता है,
इसलिए पिंजरे में जीवन भर गुलाम रहता है
अपनी भाषा, अपने विचार और
“अपने आप” पर विश्वास करें..!
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं
निशाचर, सुदूर बांस वन में
अग्नि रेखा सुलगती सी,
कोई नहीं रखता
यहाँ दीवार
पार की
ख़बर,
जो कुछ वर्षों से नहीं हो पाया
वह कुछ महीनो में कैसे हो पायेगा
अखबार के माध्यम से की गई
तमाम घोषणाएं
समय बम की तरह लगती है
उलूक की पुरानी खबर
आग हमेशा ही
जलती
तेज लपटों
से तो दोस्ती
बस दो स्केल
दूर से ही
की जाती है
कहाँ सोच
पाता है
आदमी
एक अलाव
हो जाने का
खुद भी
आखरी दौर
में कभी
.....
आज बस
सादर
आज बस
सादर
मकर संक्रांति की असंख्य शुभकामनाएं - - सामयिक पर्व आधारित प्रस्तावना मुग्ध करती है, मुझे शामिल करने हेतु आभार आदरणीया यशोदा जी, सुन्दर संकलन व प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति। मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐
ReplyDeleteमकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई | सबका मंगल हो | पठनीय सूत्रों की सुंदर प्रस्तुति |
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार
ReplyDeleteमकर संक्रांति पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐
सभी को शुभ पर्व की मंगलकामनाएं
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