Wednesday, December 23, 2020

578 ...बन्द पलकें सजल डबडबाने लगीं

 सादर अभिवादन
समझ नही पा रही हूँ
विदाई दूँ
या बधाई दूँ
आने वाला भी 
कहीं 20 से 21 निकल गया तो
वाकई लोग रो पड़ेंगे
अब रचनाएँ देखिए...


जो उस पल में रेहने संवरने के ख़ुशी में 
बाकि हर पल को भूल जाने या भुला देने में 
जो शायद उम्र भर फिर हो और 
इस पल के बाद फिर शायद कभी न हो  
इस बात का कोई आसरा न भरोसा हो 
मगर उस पल में सौ बार जीने मरने का 



सब छोड़ दिया, 
ठीक नहीं किया,
पर तुमने बहुत ग़लत किया 
कि हँसना छोड़ दिया.




हर एक विध्वंस के पश्चात, खुलते
हैं सङ्घ के कपाट, नील नद
से कलिंग तक, उत्थान
पतन है सृष्टि का
अवदान, मृत्यु
तट से ही होता है




संसार जहाँ,
सुख-सार, कहाँ!
व्यस्त रहा,
विवश रहा, प्राणी,
बिछड़न-मिलन के मध्य,
बह चला,
आँखों का पानी,
बरसा सावन,
फिर भी क्यूँ तरसा,
मन,




मन पर मढ़ी
ख़्यालों की जिल्द
स्मृतियों की उंगलियों के
छूते ही नयी हो जाती है,
डायरी के पन्नों पर 
जहाँ-तहाँ
बेख़्याली में लिखे गये
आधे-पूरे नाम 





बह चली नेह गंगा नयन कोर से
भीगते छोर आँचल किनारों से हैं

प्रीति भरके प्रवाहित हुई एक नदी
झूमती दस दिशाऐं बहारों से हैं

तब प्रणय गीत अधरों पे सजने लगे
बन्द पलकें सजल डबडबाने लगीं
....
बस आज एक ज्यादा है
झेल लीजिएगा
सादर

6 comments:

  1. शानदार चयन..
    साधुवाद...
    सादर....

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  2. सुन्दर प्रस्तुति एवं संकलन, मुझे शामिल करने हेतु ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।

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  3. शुभकामनाएं स्वीकार करें।।।।।

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  4. सुन्दर प्रस्तुति.मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार

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  5. सस्नेहाशीष असीम शुभकामनाओं के संग छोटी बहना
    उम्दा प्रस्तुति

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  6. sundar prastuti, meri rachna ko yahan shamil karne ke liye aapka bahut abhar.
    dhanyawad abhar!!

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